श्री मद वाल्मिकी रामायण उत्तरार्द्ध | Shri Madwalmiki Ramayan Uttrardh Iv

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Shri Madwalmiki Ramayan Uttrardh Iv by द्वारका प्रसाद - Dwarka Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ +३) वहाँ शरभह्ञ ऋषि को इन्द्र के साथ बातचीत करते देखना और शरभन्न ऋषि से इन्द्र के वहाँ आने का फारण पूँछना तथा शरमभन्ने ऋषि का श्रीरामचन्द्र ज्ञी को इन्द्र के आगमन का फारणु बतलाना । तदनन्तर श्रीराम- चन्द्र जी द्वारा एक्कान्तस्थान बतलाने का प्रश्न किए जाने पर, शग्भड्र ऋषि का श्रीरामचन्द्र जी को सुततीद्षण के आश्रम का पता चत्तलाना । छठवों सगे ३६-४४ राज्षर्सों के उपद्रवों से मयसीत दण्ठकवनवासी ऋषियों की श्रीरामचन्द्र जी के प्रति आत्मरक्षा के लिए प्रार्थना तथा श्रीरामचन्द्र जी का उनको असयदान देना । सातवाँ सर्ग ४४--४१ शरभह्ज के आश्रम से श्रीरामचन्द्र जी का सुत्तीच्ण के आाश्रम में जाना और आए हुए श्रीरामचन्द्र जी फी सुतीदण द्वारा पहुनाई । थाठवों समे ४२-४६ अन्य ऋषियों के आश्रर्मों को देखने के लिए अगले दिन सवेरे श्रीरामचन्द्र जी का सुतीरुण मुनि के आश्रम से बदर निकलना। सुतीदुण की पुन. आने के लिए श्रीरामचन्द्र जी से प्रार्थना। नवॉ सर्ग ५४७ - ६४ मार्ग मे धनुप घाणादे आयुधधारी श्रीरामचन्द्र जी के साथ सीता जी का घरमेविषयक वार्ताल्ाप । दसवाँ सम ६४---७१ प्रीगमचन्द्र जी करा सीता को आयुधादि लेकर वन में आने फा फारण वतताना ।




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