तीर्थङकर भगवान महावीर | Thirthkar Bhagwan Mahaveer
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुएड आम का नगर सोस्य-सा, 'चहल-पहल से भरत हुआ ।
दूर छूद्र कगडों से हे यह, सुभग शान्ति मे सना हुआ 0
त्याय मागे में निरठ नृपति भी, फ्रियत अनीति न करते हैं ।
समता के सुन्दर प्राड्रण म, सब स्वच्छन्द विचरते हैं ॥
नागर बुन्द प्राय सजन सब, जीवन सम्ल बिताते है।
चे, दर, गुड, नमन, उन में कम आते हैं ॥
' और उचा भी राज़ भवन मे, सुन्दर जीवन की लय है।
सुलभ सभी सामग्री जिसमें, स्वयम् मोंठ का आलय है ॥
अन्त.पुर मे त्रिशुला देवी, सुंख जीवन यापन करतीं।
उनकी परिचियों में ठत्प, दासी हं अनेक रहतीं ॥
धीरे-वीरे ऋम-ऋम करके, समय सस्कता जाता है।
जा भी चूण जाता है लेकिन, सौख्य-सृष्टि कर जाता है ॥
यों सम्राज्ली जिशुल माता, क्रेदिन सुख से , वीत रहे ।
प्रथण्ष ऋल आता जाता है, किन्तु न क्षोंद कष्ट सहे ॥
ये लक्षण तो बतलांते हैं, बत्स, असाधारण कोई।
माँ त्रिशला के होने बाला, क्ष्या इसमें शद्धा कोई ॥
त्रिशला मु की टहल वजाती, हैं छप्पन कुमारियों सब ।
भौति भोति की चर्चा करके, वे प्रसक्ष करतीं हैं. सब ॥
इस चुन्नी के मुख्दर क्रम में, प्र्र तुद्धिः स्नाह्षी क्री।
दिव्य भलक्तो हो रहती है, यह विशेषता है उनकी 0॥
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