अनुत्तर योगी : तीर्थंकर महावीर | Anuttar Yougi Tithrkar Mahavir

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Anuttar Yougi Tithrkar Mahavir  by वीरेंद्र कुमार जैन - Virendra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ देवी आम्रपाली का द्वार स्वागत-गून्य ही रह गया। वहाँ श्रीभगवान्‌ की आरती नहीं उतारी जा सकी । अगले ही क्षण श्रीभगवानु चल पड़े। काल गतिमान हो गया। इतिहास वृत्तायमान हो गया। शोभान्यात्रा श्रीभगवान्‌ का अनुसरण करन लगी । नगर के तमाम मण्डलो, चौराहों, नरिको, पण्यों, अन्तरायणों को घन्य करते हुए प्रभु, अविकल्प ज्रीडा भाव से वैशाली की परित्रमा करते नले गये। अपराह्न बेला से श्रीभगवान्‌ वैशाली के विश्व-विश्वत सथागार के सामने से गुज्रें। असुर्थपण्या सुन्दारियों की उन्मकत देहों से निर्मित द्वार मे प्रभु अचानक रक गये । गान्धिरी रोहिणी मामी ने जाने कितने भगों मे बलखाते, नम्रीभत होते हाए माणिक्य वे सीराजन में उजलती जोतों से प्रभु की आरती उतारी । उसकी आखि आसुओ में डूब चली । श्रीभगवान्‌ के अमिताभ मुख- मण्ठल को हजार जाँखों से देख कर भी वह न देख पायी । देवी रोहिणी ने कंम्पित कण्ठ से अनुनय किया 'बैशाली के सूर्यपु्र तीर्थंकर महावीर, फिर एक बार वैशानी के सथागार का पावन करे । यहाँ की राजसभा प्रभ की धर्मसभा हो जाये । प्रभु बेजाली के जनगण को यहाँ सम्बोधन करे 1' सुन कर वैशाली के आटकूलक राजन्यों को काठ मार गया । उन्ह लगा कि वैशाली के महानायक वी अद्धागना स्वयम्‌ू ही वैशाली के सत्यानाश को न्योता दे रही ह। अचानक मुनार्ट पड़ा 'महावीर मे सुरज-युद्ध की साक्षी हो कर भी राहिगी इतनी छोटी लात चंसे बोल गयी जानो गान्धारी, दिगम्बर महावीर अब दीवारों में नहीं बोलता वह दिगनतों के जारपार बोलता है । तथास्तु देवी ' तुम्हारी उच्छा पुरी होगी । णीघ्न ही बैगाली मुझे सुनेगी । मै उसके जन-जन की आत्मा से लोलंगा ! अचानक जय तफ व्याप्त निस्तब्धता टेट गई । असख्य ऑर अविराम जयकारों की ध्वनियों से वैशाली के खुब्ण, रजत आर ताम्र बलशा मे मण्दल चत्राकार घमते दिखायी पड़ने लगे । और भगवान्‌ नाना वॉजिन्न ध्वनियो से घोपायमान, सुन्दरियों की कमानों मे आेण्टित बेशाली के पूब ट्वार को पार कर, 'सहावन उद्यान' की ओर गतिमान दिखायी पढ़ें । मर तभी हटातू वैशाली के आकाश दव-बिमानों की सर्णि-्रभाओं से सौधघिया उठे । और देव-दुन्दुभियों तथा शखतादों से वैशाली के गर्भ दोलायमान होने लगे । कि 2 र




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