विश्व - विहार | Vishv - Vihar

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Vishv - Vihar by ठाकुर राजबहादुर सिंह - thakur rajbahaadur singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(रू) यदि वदद मद्दान्‌ भविष्य, जिसकी श्राशा हमारे सब दी बालक, जिनके हृदय में स्वदेश-प्रेम लद्दरें मार रहा है, कर रहे हैं,--यदि उस भविष्य को सच- मुच दी मद्दान्‌ श्रौर मददत्वपूर्ण बनाना है, तो उस उत्थान का श्रकुर हर घर मे उत्पन्न कर देना चाहिये। “हम दूसरों को झान देकर श्रपने ज्ञान की बृद्धि करते हैं ।”--इस कद्दावत में बहुत-कुछ सत्य है। फिर भी यद्द विदित है, कि प्रौद मजुप्यों का ज्ञान भी बहुतत-सी वातां मँ बहुत न्यून है, श्रौर सदस्रों ऐसी माते है, जिनको वं श्रव भी सीख सकते है । --पी° शेशाद्रि ( देड झॉफ 'दि डिपार्टमेटट श्रॉफ इज्नलिश स्टडीज!, बनारस युनिवर्सिटी, --प्रेसीदेयद--घॉल इण्डिया फ्रेदरैरन भोकर टीचर्स एसोसियेशन 1 )




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