शान्ति - कुटीर | Shanti - Kutir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र्१् पाँचवाँ परिच्छेद ।
बैठ बैठा चुपचाप सोच विचार किया करता था; यहाँ तक कि भोला-
जाथसे भी अधिक बातचीत करनेको जी नहीं चाहता था | मोछानाथ
जेरे मनकी अवस्था जानता था, इसलिए वह मेरे मन शान्ति छानेके
लिए-मुझे प्रसल वनानेंके लिए-तरह तरहकी बातें करता था। इसमें
सन्देह नहीं कि भोठानाथके साथ रहनेसे मुझे बहुत कुछ सहारा मिलता
था, मगर हृदयके भीतर अशान्ति-बेचैनी-की आग सुल्गा ही करती थी।
भोरानाथने एम० ए० की परीक्षा पास करके उसी कालेजमें प्रोके-
सरीकी नौकरी कर लो | मैं आईन पढ़ने छगा। मैंने यह नहीं सोचा
कि क्यों कानून पढ़ता हूँ, कानून पढ़कर क्या करूँगा ! कानूत पढ़ना
होता है, इसी कारणसे में कानून पढ़ने छगा | मैं रोज छोँ-कांछेजमे
जाता था; मंगर वहाँ किस चीजकी पढ़ाई होती है, इसकी मुझे कुछ
खबर न थी। प्रोफ़ेसर साहब जब आकर पढ़ाना शुरू करते थे तब
हजार चेष्ठा करनेपर भी मैं पुस्तकमें मन नहीं छगा सकता था। उस
समय मेरा मन उस कालेजकों छोड़कर न जानें कहाँ भागा भागा
फिरता था; मैं भी उसका पीछा करता करता दमभरमें अनेक देशोंकी
सैर कर आता था । प्रोफ़ेसर साहब क्या बतला रहे हैं, पढ़नेवाले क्या
, ७ रहे हैं, किसी ओर मेरा ध्यान नहीं था। प्रोफ़ेसर साहब कभी कभी
* पा5? से अछ्ग किसी भद्भुत प्रसंगको छेड़कर हँसते हँसाते थे और
सब छड़के उसमें उनका साथ देते थे | उनकी हँसीसे कभी कभी मेरी
नींदसी खुछ जाती थी, में चौंक पड़ता था और उनकी इस हँसीका
कोई कारण न समझ सकनेके कारण मानों झेपकर सिर झुकाये बैठा
रहता था | इस आफतसे अपनेको बचानेके लिए भें जकसर सबके
पीछे भेज करता था। मेर सहपाठियोमिंसे कभी किसीने मुझे उस
स्थानसे उठकर जागे विठ्झानेकी चेथ नहीं की | इसमें सम्देह नहीं
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