जैन बौद्ध तत्वज्ञान | Jain Bauddh Tatvagyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धअकाशकच्का बत्तवय। इस ग्रंथके प्रकाश करनेका हेतु यह है कि जगतकी हिन्दी भात्रा ज्ञाता विह्वन्मंडडीको इस वातका निश्चय कराया ज़ाबे कि प्राचीन जेनघर्म ओर वोद्ध धर्ममें किस तरहसे साम्यता है । उभय दर्शेनोंके माननीय अन्थेके झ्ाधारसे दोनोंकी समता प्रदर्शित क़रनेका काम ग्रंथेंके वावयोंको दे कर किया गया है | हर भी उचित समझा गया कि इस अन्धको अधिकतर भेटमें देकर प्रचार किया जावे जिससे शीघ्र ही इस तल्वका प्रकाश हो जावे . कि जैन ओर वोद्ध तत्नज्ञान एक है। सागरमें जब मैंने सन्‌ १९३२ में वर्षाकाल व्यतीत किया था तब ही यह ग्रंथ वहां लिखा गया था। वहां दिहली निवासी धर्मात्मा छाला मिद्नलाल लालचंदजी अग्रवाल दिगम्बर जैनका फर्म है। यह भारतके प्रसिद्ध वीड़ीके व्यापारी हैं | आपसे इस अन्थके प्रकाशनके लिये कहा गया। आपने सहर्ष अन्थके मुद्रणका व प्रकाश होनेका खचचे देना स्वीकार किया । इस उदारताके लिये वे धन्यवादके पात्र हैं। जो कोई इस ग्रंथकी खरी- दना चाहें उनके लिये इस पुस्तकका दाम बहुत अल्प सिर्फ बारह आना खखा गया है। पुस्तक विक्रीसे जो दाम आवेगा वह पुस्तक दान खाते ही जमा किया जायगा जिससे और भी 'पृस्तकोंका दान किया जा सके । यह अन्थ बहुत उपयोगी है, हरएक तत्वखोजीको पढ़कर लाभ उठाना चाहिये | अगास । ब्रह्मचारी सीतलप्रताद, व्यवस्थापक न्‍्द के है रज के ४ आत्मधर्म सम्मेडन, चदावाड-सुरत |




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