भासनाटकचक्रम् | Bhasanatakachakram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वितीय परिच्छेद भास के नाटक 1 ट्रेेणड्रम प्लेज” के आविष्कर्त मद्दामहोपाष्याय प० टी० गणपति शाद््री ने भास के तेरह नाटकों को प्रकाशित क्या । बाद में १६४१ ई० में राजवैध कालिदास शास्त्री ने 'पत्तफल' नाम का एक श्रन्य नाटक प्रकाशित किया और इसे मामकझत बताया | यह नाटक देवनागरी की दो हृश्तप्रतियों पर आघृत था। यह रायायण के बालकाएड पर आ्धृत है तथा प्रतिमा एवं ऋमिपेक नायकों से साम्य रखता है। इसमें तप तथा वैदिक-यश्ञ को प्रशस्ति है। दशरथ को 'यह से पुत्र उन्नन्न होते हैं, विश्वामित्र यज्ञ के द्वाया ब्रह्मर्पि बनते हैं. श्रोरगम 'का सीता से परिणय यज्ञ के द्वाय होता है जिसके श्राघार पर इस नाटक का नामकरण यहफल् हुआ। चूंकि प्रारम्म से दी ट्रिवेण््रम-नाटकों के मांस प्रणीत होने के विषय में घोर विवाद उठ खडा हुआ था श्रत उस विवाद में इस नाटक के प्रकाशन ने शआ्राहुति का काम दिया। लोगों ने इसे जाली बताया और इस कथन को बल इस नाटक की इस्वप्रति के देवनागरी में होने से मिला । परन्तु, डाक्टर पुसाल्कर ने इसे मास की रचना बताया और कहा कि यह उनकी प्रीढ़ावस्था की रचना है| डाक्टर पुसालकर ने इसकी प्रामाणिक्ता तेरद ट्रिवेण्ड्रम-नाटकों की मापा, नास्यशैलो या भार्वो की समानता के श्राघार ।पर सिद्ध की | उन्होंने उत्तरी मारत में प्राप्त इस इश्तप्रति के आाघार पर यह भी सिद्ध करने का प्रयास किया कि अन्य तेरह नाटक भी भास-प्रणीत दी है | किन्तु, १६४२ में हो जयपुर के प० गोपालदच शाम्री मणए्डाखर (श्रोग्यिर्टल रिरर्च इन्ट्टीव्यूड यूना में पयारे श्र डा० सुकथनसर तथा डा० पी के गोडे से कहा कि यशफ्ल की रचना उन्होंने ख्वय की हैं तथा प्रव्त “पूर्वक उसमें मास को शैली का अनुकरण किया है। उन्होंने यद भी कहा कि “यरुपल पर उन्होंने तीन थौकायें की हैं जिनसे उनके वास्तविक प्रणेता होने हे म०




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