युद्धकाण्ड पूर्वार्द्ध | Yuddhkand Purvardh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
702
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २ )
बढाने के लिए यह भी कहना कि अद्भदादि बावर लडझ्ढा
को तहस-तहस कर डालेंगे। अतः सेना को युद्धयात्रा
के लिए शीघ्र आज्ञा दी जाय ।
चौंथा सर्ग २०--४७
सुत्रीव के प्रति श्रीरामचन्द्र जी का यह कथन कि,
युद्धयात्रा के लिए अभी मुहूर्त शुभ है । श्रीराम चन्द्र
जी का ससेन्य लद्बा की.ओर प्रस्थान । शुध शहरों का
देख पढ़ना । समुद्रतट (पर पहुँचना, वहाँ सैन्यशित्रिर
की स्थापना । समुद्र को देख हरियूथपों का विस्मित
होना । ५
पाँचवाँ सर्ग ४७--४२
सागर के उत्तर तट पर सेना का पड़ाव डालना ।
सीता की याद कर, लक्ष्मण जी के सामने श्रीरामचन्द्र «
जी का शोफविहल हो विज्ञाप करना | लक्ष्मण जो के
घीरज वंबाने पर श्रीरामचन्द्र जी का सन्भयोपाप्तन
करना |
छठ्वों सग ४३--५७
लड्ढा मे हनुमान जी द्वारा किए हुए उपद्रवों को देख,
रावण की, राक्षसों के प्रति युक्ति।
सातवाँ सग
रावण के बल पराक्राम की प्रशसा करते हुए राक्षसों
का उसको धीरज बँधाना । इन्द्रजीत का प्रताप वर्ण न ।
आंठवाँ सर्ग ५७ --६७
रावण के सामने प्रहस्त, ढुमुंख, वजदृष्ट्र, निकुम्भ,
बजहनु का अपने अपने वलवीर्य की डींगे हॉफना ।
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