कसाय पाहुडं | Kasay Pahudam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
117 MB
कुल पष्ठ :
558
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गा० २२ ] टिदिविहत्तीए अणिओगद्दाराशि ७
49 तत्थ अणियोगद्दाराणि |
$ ६ तत्थ मुलपयडिट्दिदिविहचीए अणियोगद्वाराणि वचव्वाणि अण्णहा परूव-
णाणुववत्तीदों | किमणिओगदारं णाम ? अहियारों भण्णमाणत्थस्स अवगमोवबाओ |
49 सवब्वविहत्ती णोसव्वविहत्ती उक्कस्सविहत्ती' अशुक्कवस्सविहत्ती
जहण्णविहसी अजहण्णविहत्ती सादियविहतत्ती अणादियविहत्ती घुच-
विहत्ती अद्घुवविहत्ती एयजीवेण सामित्त कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंग-
स्थितियोंके भ्ेदकी अपेक्षा स्थितिभेद क्यों नहीं हो सकता है अर्थात् हो सकता है क्योंकि
एक प्रकृतिमें अपने स्थितिविशेषकी अपेक्षा भेद मानते हुए उत्तर प्रकृतियोंकी स्थितियोंमें
अपने स्थिति भेदकी अपेक्षा ओर अपनेसे भिन्न अन्य प्रकृतियोंकी स्थितियोंके भेदकी अपेक्षा
यदि स्थिति भेद न माना जाय तो विरोध आता है।
विशेषाथे-प्रश्न यह है कि एक स्थितिको स्थितिविभक्ति पदके द्वारा कैसे सम्बोधित
कर सकते हें, क्योंकि जो स्थिति स्वरूपतः एक है उसमें भेदकी कल्पना नहीं की जा सकती
है। इसका कई प्रकारसे समाधान किया है । प्रथम तो यह बतलाया है कि स्थिति एक हो कर
भी उसमें प्रकृति और प्रदेशोंकी अपेक्षा भेद सम्भव है, इसलिए एक स्थितिकों भी स्थितिविभक्ति
कहा है। फिर भी यह समाधान स्थितिकी मुख्यतासे नहीं हुआ इसलिए अन्य प्रकारसे इस
प्रश्नका समाधान किया गया है। इसमें बतलाया है कि कर्म आठ हैं और उनमेंसे यहां मोहनीयकी
मूलप्रकृतिस्थिति विवज्षित हे। यततः वह अन्य ज्ञानावरणादिकी मूलप्रकृतिस्थितिसे भिन्न है
इसलिए यहां मूलग्रकृतिस्थितिके साथ विभक्ति पद जोड़ा गया है| इस प्रकार यह शंकाका उत्तर
तो हो जाता है पर इससे एक स्थितिका स्वरूपगत भेद समभमें नहीं-आता। इसलिए आगे
इसे प्रकट करनेके लिए चौथे प्रकारसे समाधान किया गया है। इसमें बतलाया है कि जब
मूलप्रकृतिस्थितिमें उत्कृष्ट आदि भेद सम्भव हैं तब उसके साथ विभक्ति पर जोड़नेमें क्या
बाधा है। इस प्रकार एक स्थिति स्थितिविभकति हे और अनेक स्थिति स्थितिविभक्ति है
यह सिद्ध होता है ।
89 अब मूलप्रकृतिस्थितिविभक्तिके विषयमें अज्लुयोगद्वार कहते हैं ।
3६. मूल्षग्रकृति स्थितिविभक्तिके विषयमें अनुयीगद्वार कहना चाहिये, अन्यथा उसकी
प्ररूपणा नहीं हो सकती हे ।
शंका-अलुयोगद्वार किसे कहते हें ९
समाधान-कंहे बानेवाले अथंके जाननेके उपायभूत अधिकारकों अनुयोगद्वार
कहते हैं । ः
&9 यथा- स्वेविभकति, नोसवेविभक्ति, उत्कृष्ठविभक्ति, अनुत्कृष्टविभक्ति,
जघन्यविभकिति, अजपघन्यविभकति, सादिविभकिति, अनादिविभक्ति, भ्र् वविभक्ति,
अध्् वविभक्ति, एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, काठ, और अन्तर तथा नाना जीवों
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