किष्किंधा काण्डम् | Kishkindha Kandam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ईकिष्किन्धा काण्ड १३
रामजी को बनमें बिचरते दखके हनुमानजी दुसीभए ऐसेही भरतजी
दुखी भए हैं यथा राम लपन सिय विन पग पनहीं। कीरे मुनि
बेष फिरहिं बन बनहीं यह दुखदाहदंहे नित छाती। भूष नवासर
नींद न राती । इसीसे आगे हनुमानजी ने दोनों भाहयों को पीठ
परचढा लिया॥
कीतुमतीन देवमहँ कोठ। नरनारायणकी तमदोठ ॥
की तुम तीन देवताओं में कोइ हो कीतुम दोनो नर नारायण हो
तीन देव में पछने का भाव, राम छॉडिमन को विशेष तेजस्वी देख
के विशेष देवताओं में पूछते हैं, कोउ कहने का भाव, दो में तीन
का पूंडना अयोग्य है, राम लठुमन दो हें, बह्या विष्णु महेश तीन
हैं, इससे कोउ पद कहकर दो दो की जोड़ी पूछते हैं, कि तुम
ब्रह्मा विष्णु हो कि शिव विष्णु हो ऐसा पूछने से श्यागछ गोर व
रन की भी जोड़ी बनी रही बद्या गौर हैं विष्णु श्याम हैं शिव गोर
हैं, विष्णु श्याम हैं, नारायन श्याम हैं, नर कहे अजन गौर हैं, ॥
दोहा ।
जग कारन तारन भव | भजन धरनी भार ॥
कीतुमअखिलभुवनपती | लीन्ह मनुज अवतार ॥१॥
जगत के कारण कहे जगत के उत्पत्ति करता हो इसी से जगत
की रक्षा के लिये ओर संसार समुद्र से पार करने के वास्ते पृथ्वी
१ ब्रह्मा विष्णु महेश नर नारायण अखिल भुवन पति इनमे हनुमानजी को कोई निश्चय
भया इसी से यहां सन्देहालंकार है ॥|
(१ ) थ्रुत्वा स्थूलं तथा सूक्ष्म रूप भगवतों यतिः स्थूले निर्मित मात्माने सनेःसक्षम घिया
नयेत् ॥ इति भागपते पश्चमे स्कंघे ॥ टीका यती अर्थात भगवत प्राप्त के अथे यत्न करने बाला
भगवान के स्थूल ओर सूक्ष्म रूप को सुनकरके स्थूछ खरूप मे चित्त को स्थापन करके धीरे
भीरे सूक्ष्म रुप में बुद्धि के द्वारा चित्त को छेजाय ॥
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