कर्पूरमन्जरी | Karpoormanjari

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Karpoormanjari by रामकुमार -Ramkumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम जबनिकान्तरम्‌ _ सूत्रधार:--ता केण समादिद्दा प॑जध १ ( तत्‌ केस समा- दिष्टा: प्रयुद्ध्यम्‌ ९ ) रा पारियाश्िक:--- “ चाउद्ाणकुलमौलिआलिआ रशअसेहरकंदगेहिणी | भत्तुणो किदिमबंतिसुंदरो सा परउंजइहुमेदमिच्छदि ॥११॥ ( चाहुबानकुलमीलिमालिका राजशेखरकवीन्द्रगेहिनी ।| भर्तु: कृतिमवन्तिसुन्दरी सा प्रयोजयित॒ुमेतदिच्छति ॥११॥ ) किंच--- चंदपालथ रणीहरिएंकों चक्कवद्दिपश्र॒लाहशिमित्त | एत्य सइ अबरे रससोत्ते कुंतलाहिवसुद परिणेदि ॥११॥ ( चन्द्रपालवरणीहरिणाइूुख्क्रवत्तिपदलामनिमित्तम्‌ | अन्न सट्टकतरे रसस्नोतसि कुन्तलाधिपसुतां परिणयति ॥१२॥ ) केवर्ल भूतलमे प्रकाशयति, राजशेखरश्य तु चरित॑ कलद्टरहितं ब्रिभ्वुवनप्रकाशक चेति। चन्द्रादुपमानाद्राजशेखरस्थोपमेयस्याधिक्यं वर्णितम्‌ ,तेनात्र व्यतिरेक्रालद्वारः । व्याख्या--चाहुचानकुछत्य विख्यातक्षत्रियवंशस्य सौलिमसालिका शिरो- माल्यभूता कुछालद्भारभूता, राजशेखरकवीन््रस्य गेहिनी भार्या या अबन्तिसुन्दरी नाम सा स्वभतुः राजशेखरध्य क्ृतिम एतत. कर्प्रमश्लरीनामसहक नाट्येन प्रदर्श- यितुर्मिच्छति । कर्वेरेव भार्या एतस्य ग्रयोजिक्रेति भावः ॥ ११ ॥ व्याब्या--चन्द्रयाल एच बरिणीदरिणाइः भूचन्द्रः चक्रवर्तिपदस्य लाभाय उज्ज्वल द्वो रहा है। चन्द्रमा तो केवछ एक भूत को ही प्रकाशित करता हैं, ये तो तीनों छोकों में असिद्ध हैं । सुत्र०--किसकी आज्ञापामर तुमछोंग (इसका) प्रयोग (अभिनय) कर रहे हो । के चौहान कुंछ में उत्पन्न हुई, राजशेखर कवीन्‍्द्र की पत्नी अवन्ति सुन्द्री अपने पति की इस रचना का अभिनय कराना चाहती है ॥ ११ ॥ और भी--एथित्री का चन्द्रमा राजा चन्द्रपाक चक्रवर्तीपद की प्रापिके लिये




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