संस्कृत के सन्देश काव्य | Sanskrit Ke Sandesh Kavya

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Sanskrit Ke Sandesh Kavya by रामकुमार -Ramkumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रस ) झृष्णुरमायिते & तु गोपायन्त्श्च काश्चन। वत्सायतां हन्ति चान्या तन्नका तु बकायतीम॥ ?७॥ आरहय दुर्गा यद्वत हृष्णस्तमलुकुर्वतीमू। बेसु क्यरान्ती क्रीडन्तीमन्या शसन्ति साध्विति ॥ रै८ ॥ क्रस्योचित्‌ स्वम्ुज्ञ न्यस्य घलनन्‍्त्याह्मपरानजु । कृष्णोडह पश्य गति ललितामिति तनन्‍्मना ॥ १६ ॥ मा भेष्ट धातपर्पाम्या तत्वाण बिद्वित मया। इत्युय्ल्यैकेन हस्तेन यतन्त्युन्निदधेडम्बरम्‌ ॥ २० ॥ आस्दयका पदाउक्रम्य शिरस्यादह्यपरा छझुप। दुशहे गच्छु जातोइहः खलाना नह्ठु दण्डघृक ॥ ?१॥ त्वेकोयाच हे गोपा दावार्ति पश्यतोट्यणम। चत्तुप्याश्यपिद्ध्यमू थो विधास्थे क्षेममन्‍जसा॥ २? ॥ वद्धान्यया स्त्रजा फाचित्तन्यी तथ उलूसले। भीता सुढक्‌ पिधायास्य भेजे भीति प्िडम्बनम्‌ ॥ २रे ॥ एवं रृप्ण पृच्छमाना बुन्दारनलतास्तरुन, | स्यवक्षत्‌ बनोदशे पदानि परमात्मन ॥२४॥ पदानि व्यक्मेतानि - नन्दसूनोमेद्वात्मन 1 लच्यन्ते द्वि ध्यज्ञाम्मोज्यज्ञाकुशययादिमि, ॥ २१ ॥ा तैस्ते. पर्देस्तत्पदयीमनस्यिन्‍्छुस्त्योडअ्रतोडवला । वध्या पर्दे सुधक्तानि पिलोक्यार्ता समठुत्न्‌॥ २६ ॥ फसया पदानि थैतानिं याताया ननन्‍्दखुझछुना। असन्यस्तप्रकोष्टाया करेणी करिणा यथा ॥ श्छता इस कथा घ्सग के २४७, २४ और २६ में शलोक के आधार पर दी ध्रीरष्ण सार्थभोम ने अपने पदायद्ूत फाव्य फी रचना की दे । इसके अतिरिक्त मोपियों का अपनी विरहायस्था में थुन्ताथन फी लताओं ओर बृक्षों से धृष्ण के सम्बन्ध में पूछना भी अनेक दूत कार्यों का मार्गमवर्तफ दे । है भीमदुभागवत कै दशम स्कन्ध के ४६ दें अध्याय में मी सन्देश काव्य की कुछ रूपरेखा पाई आती दे। एृष्ण अब गोकुल से मथुग आ जाते है. और थहदत दिनों तक उन्हें गोइल जाने का अयसर दी नदों मिलता दे तग्र थे नन्द ओर यशोदा के दूर




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