श्रीमद् राजचन्द्र | Shree Mad Rajachandra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
890
श्रेणी :
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No Information available about पं. जगदीशचन्द्र शास्त्री - Pt. Jagdish Chandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रायचन्द भाईके कुछ संस्मरण
अकरण पहला
प्रास्ताविक
में जिनके पत्ितत सत्मरण ढिखना आरभ करता हूँ, उन त्यगीय औमदू रामचठ्रकी
आज ज-मतिधि है । कार्तिक पूर्णिमा ( सतत् १९७९ ) कौ उनका जम हुआ था। में
चुछ यहाँ श्रीमद् राजचद्धका जीयनचरित नहीं छिस रहा हूँ । यह कार्य मेरी शाक्तिके
बादर है । मेरे पास सामग्रा भी नहीं | उनका यदि मुझे जीवनचरित् छिखना हो तो मुझे
चाहिये क्लरि मैं उनकी जमभू|मि ववाणीआ यदरमें कुछ समय जिताऊँ, उनके रहनेका मकान
देखूँ, उनके खेठने कूदनेके स्थान देसूँ, उनके बाल मित्रोंसे मिदूँ, उनकी पाठझाढामें जाऊँ,
उनके मित्रों, अनुयाथियों और सगे समपियोंतते मिह, और उनसे जानने योग्य बातें जान-
कर ही फिर कहीं छिघ्नना आरम करूँ ) परतु इनमेंमे मुझे किसी भी बातका परिचय नहीं |
इतना ही नहीं, मुझे सस्मरण लिखनेकी अपनी शक्ति और योग्यताके ग्रिषयमें भी शका
है। मुझे याद है मैंने कई बार ये पिचार प्रकट किये हैं कि अयकाश मिछनेपर उनके सस्मरण
ढछिखूँगा। एक शिष्यने जिनके लिये मुझे बहुत मान द्वै, ये पिचार सुने और मुए्यरूपसे यहाँ
ड्दके सतोपके लिये यह छिखा है। श्रीमद् राजचद्धको मैं * रायचद माई ! अथया “कत्ि?
कहकर प्रेम और मानपूर्पक सब्रोधन करता था | उनके सत्मरण लिखकर उनका रहस्य
मुमुक्षुओंके समक्ष रखना मुझे अच्छा लगता है । इस समय तो मेरा प्रयाप्त केउछ मितरके
सतोपषके छिये है | उनके सक्ष्मणोंपर न्याय देनेके ठिये मुझे जैनमार्गका अच्छा परिचय
होना चाहिये, में स्वीझार करता हूँ. कि यह मुझे नहीं है। इसलिये मैं अपना दृष्टि बिदु
अत्यत सकुचित रखँँगा। उनके जिन सक्मरणोंक्री मेरे जीमनपर छाप पड़ी है, उनके
नोदस, ओर उनसे जो मुझे शिक्षा मिला है, इस समय उसे ही ठिखकर में सतोष मारनूँगा।
मुझे आशा है कि उनसे जो छाभ मुझे मिछ। है वह या वेसा ही छाम उन सक्मरणोंके पाठक
मुमुक्षुओंकी भी मिलेगा |
४ मुमुक्षु ” झब्दका मैंने यहाँ जान बूझकर प्रयोग किया दे । सब प्रकारके पाठोंके लिये
यह प्रयास नहीं |
मेरे ऊपर तीन पुरुषोंच गहरी छाप डाली है--टाल्सटॉय, रप्किन और रायचद
भाई | टाल्सटेयने अपनी धुस्तऊेोंद्ारा और उनके साथ थोड़े पत्रव्ययद्वारसे, रस्किनने अपनी
एक ही पुस्तक * अठु दिस छाष्ट'से, जिसका गुजराती नाम मैंने सर्मोदय ? रक््खा हे,
और रायचन्द भाईने अपने साथ गाइ परिचयसे | जन मुले हिन्दूधर्ममें शका पैदा हुई उस
समय उसके निवारण करनेमें मदद करनेयाके रायचद भाई थे | सन् १८९३ में दक्षिण
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