भटकाव | Bhatakav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भटकाव : 25 देवादिदेव नी रवता के आदि नही ये । सजा-मजाया कमरा, ढेरो लोग, आवाजों और तेज रोशनी के अभ्यस्त देवादिदेव की उँगलियों मे उत्तेजना से कंपन शुरू हो गया। बहुत बार उसके बारे में बडी बातें लिखी-कही गयी, बहुत बार कंमरे के फ्लेश बल्ब से उसका सर्वेपरिचित विपण्ण मुख झुलस गया क्वा | उस चेहरे पर एक हो भावाभिव्यक्षति देखी जाती हैं। सुख मे, विपत्ति मे, मित्र की मृत्यु पर, प्रेस सम्मेलन मे, एयरपोर्ट पर, बाजार में, रास्ते पर, खिड़की में, कमेटी को मीटिंग मे, प्रदर्शन भे, विरोध सभाओ में वह चेहरा एक-जैसा भाव लिये रहता है--परुप, गभीर, रूखा, विपण्ण | कभी झिसी ने उसे हेसते नही देखा । आज नीरव, तरल चाँदी-सो आश्चर्य जनक सध्या मे जब वृक्ष घूसरित हरे हो रहे हैं, हिममंडित हिमालय के आगे ज॑से उसे गूँगा बना देता है। वेचेनी होती है। साँस फूलने लगती है। सांस फूलती है तो बहुत कष्ट होता है, मानो वायु मे ओज्ञोन! न हो । कथामृत में एक कहानी है . पद्मगधी हवा में मछुआरिन को नीद नही आ रही थी। मछलियों वाली सूत की झोली से पानी छिडकते ही उसे नीद आ गयी । पहाडी देवदार के वृक्षों से धूषणधी सुगध झर रही है। बतास घूप की गध से भरी है। फिर भी नीद नही है, नींद आ नही रही है। काँच की खिडकियो के उस पार तारे टिमटिमा रहे है । नींद क्यो नहीं आ रही है ? हवा में ओज्ोन क्यों नहीं है ? निर्जन में आकर अपने को खोजने को बात एक धोखे-सी है। झाँसा है। हरेक की अपनी पसद है । वैसे आज तक देवादिदेव कभी एक घटे के लिए भी अकेला नही रहा था | सभा-समिति, सेमिना र, डिनर, लच, कॉकटेल, अड्डेवाड़ी, वीक-एड पार्टी, धर पर जमघट। वरसो से देवादिदेव ने अपनी पत्नी और बेटे के साथ खाना नही खाया । ईप्सिता लड़को के साथ खा लेती। उसे दोप भी नही दिया जा सकता। देवादिदेव अकसर घर पर खाना नहीं 1. एक गैंस जो वातावरण में रहती है ।




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