चरित्र - निर्माण की कहानियाँ | Charitar Nirman Ki Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री व्यथित हृदय - Shri Vyathit Hridy
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पंहौरा चित्रकार ] १७
(कह रहे है ? उसके मन में क्रीघ की ऊँछ भावना भड़की । किन्तु
11डसने सव को दवाकर उत्तर दिया, 'यह तो नहीं हो सकता महा-
राज ! कला बाँध कर कदापि नहीं रक्खी जा सकती ओर फिर
एमैं श्रमजीबी हूँ, मुझे जहाँ काम मिलेगा, मैं करू गा । चाहे वह
कोई भी हो !?
| महाराज ने अपनी बातो को दूर तक फेकते हुये कहा, किंतु
! मै तुम्हे इस चिन्ता से मुक्त कर दूगा हीरा ! मे तुम्हे तुम्हारे
| जीवन तक काम दूगा!!
चित्रकार ने महाराज की वात मान ली । सहाराज ने फिर
पूछा, 'तो प्रतिज्ञा करते हो न, कि आ्राजीवन किसी का काम न
॥ करूगा
/ चित्रकार के हृदय को एक ठेस सी लगी | उसका हृदय
, पीड़ा से मथ उठा । उसने उत्तर दिया, 'ऐसी प्रतिज्ञा मै कैसे कर
सकता हूँ महाराज ! मन तो मेरे वशमसे नहीं।जब तक मेरा
' मन चाहेगा, आपका काम करू गा, और जब न चाहेगा, अलग
हो जाऊँगा।!
महाराज ने फिर कहा, 'नही हीरा, तुम्हे यह प्रतिज्ञा करनी
. ही होगी। तुम्हे यह कहना ही होगा कि तुम्हारे हाथ पाटन के
स्वामी के अतिरिक्त और किसी का काम न करंगे |
हीरा ने दप और गौरव से उत्तर दिया, 'ऐसी प्रतिज्ञा तो
; खुक्त से न की जाययी महाराज! मै विवश हूँ, वहुत विवश !?
च० कृ०--२
User Reviews
No Reviews | Add Yours...