चरित्र - निर्माण की कहानियाँ | Charitar Nirman Ki Kahaniyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पंहौरा चित्रकार ] १७ (कह रहे है ? उसके मन में क्रीघ की ऊँछ भावना भड़की । किन्तु 11डसने सव को दवाकर उत्तर दिया, 'यह तो नहीं हो सकता महा- राज ! कला बाँध कर कदापि नहीं रक्खी जा सकती ओर फिर एमैं श्रमजीबी हूँ, मुझे जहाँ काम मिलेगा, मैं करू गा । चाहे वह कोई भी हो !? | महाराज ने अपनी बातो को दूर तक फेकते हुये कहा, किंतु ! मै तुम्हे इस चिन्ता से मुक्त कर दूगा हीरा ! मे तुम्हे तुम्हारे | जीवन तक काम दूगा!! चित्रकार ने महाराज की वात मान ली । सहाराज ने फिर पूछा, 'तो प्रतिज्ञा करते हो न, कि आ्राजीवन किसी का काम न ॥ करूगा / चित्रकार के हृदय को एक ठेस सी लगी | उसका हृदय , पीड़ा से मथ उठा । उसने उत्तर दिया, 'ऐसी प्रतिज्ञा मै कैसे कर सकता हूँ महाराज ! मन तो मेरे वशमसे नहीं।जब तक मेरा ' मन चाहेगा, आपका काम करू गा, और जब न चाहेगा, अलग हो जाऊँगा।! महाराज ने फिर कहा, 'नही हीरा, तुम्हे यह प्रतिज्ञा करनी . ही होगी। तुम्हे यह कहना ही होगा कि तुम्हारे हाथ पाटन के स्वामी के अतिरिक्त और किसी का काम न करंगे | हीरा ने दप और गौरव से उत्तर दिया, 'ऐसी प्रतिज्ञा तो ; खुक्त से न की जाययी महाराज! मै विवश हूँ, वहुत विवश !? च० कृ०--२




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