पंचरत्न | Pancharatn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सफर तय किया । उनके शरीर मे भूख सहने और भूखे रहकर भी चलते और पाप करने की जितनी ताकन है उतनी विरलो मे होगी । बम्बई मे उन्होंने चाय सलाइस पर बहुत दिन काटे हैं । 'ये कोठेवालिया” मे उन दिनो की एक भलक है। बम्थई में एक बार किसी बारणवश उन्होन 28 दिन तक उपवास किया था ! 20 जून, 1947 के अपने कार्ड म॑ उन्होंने लिखा था ' उपवास कल अदटूठाइस रोज्ध बाद दूटेगा ) पन्‍तजी इलाहाबाद जावे से पहले मुझे अन्न खाते हुए देखना चाहते हैं। उनका प्रेमपूर्ण आग्रह न मानकर मुझे ऋपने को सुजप दते के लिए न मालूम कौन-सा सख्त तरीका सोचना पडता । खैर ? छ्िद न रही, जिद भो गई।” इत बयान से पाठक समभ लेंगे कि नागरजी ने उपवास स्वेच्छा से किया था। स्वमाव से वे काफी ज़िद्दी हैं। पहले मैं बहस करके अपनी बातें--- जो हमेशा सही न होती थी--मनवाने की कोशिश करता था । जब मैं समभता था नागरजी को मैंने तकोँ की जजीर से बाघ लिया है, तभी नागरजी ऐसी तर्कातीत बातें कहकर जजीर तोड देते कि मैं उतकी शक्ल देखता रह जाता। एक बार हिसा-अहिंसा पर देर तक उनसे बहस हुई । नागरजी को ठेलता हुआ मैं उस कोने मेले गया जहा उन्होंते घोषित किया कि सभी हिंसर जीवनी-शक्ति का प्रयोग है. यही नही वे उसका स्वागत करते है, इससे भी बढकर यह कि हिन्दु छुस्लिम दगो मे प्रकद होने वाली हिसा ओर शोपण का नाश करने वे' लिए की गई हिंसा म॑ कोई अन्तर नही है और दोनो ही स्वागत योग्य हैं / त्ागरजी की ये स्थापनाएं इतनी विचित्र थी और उनके स्वभाव, सस्कारों और विचारों के इतना प्रतिकूल कि मैंने उन्हे कागज पर लिखा लेना ही उचित समझा, ताकि सनद रहे और वक्‍त जरूरत वास आए। पहले मैंने दो प्रश्न लिखे (1) क्या दगे छोवनी शक्ित का प्रयोग हैं ओर तुम उनका स्वागत करते हो ? (2) क्या तुम द्योपण की खत्म करने के लिए क्राति और दगो को जीवनी-शक्ति वा प्रयोग समकर दौनों का हो स्वागत करते हो ? इनके उत्तर मे नागरजी ने विशाल आकार में लिखा--हा डा




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