सत्य की खोज | Satya Ki Khoz
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हुकुमचन्द भारिल्ल -Hukumchand Bharill
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(३)
नारियाँ सहज हो श्रद्धामयी होती हैं। धार्मिक भावना भी उनमें पुरुषों की
अपेक्षा अधिक पाई जाती है, पर समुचित शिक्षण के अभाव में उनमें विवेक का
विकास नहीं हो पाता। एक तो शीत्र यौवनागम के कारण उन्हें पढ़ने का समय
कम मिल पाता है, दूसरे उनकी शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान भी नहीं दिया जाता!
सहज श्रद्धावान नारी में यदि समुचित शिक्षा के सदूभाव से विवेक का भी विकास
हो जावे तो सोने में सुगन््ध हो जाने को कहावत चरितार्थ हो जावे।
सहज श्रद्धामबी रूपमर्त कौ जितनी आस्था तथाकथित धर्म में थी, उतनी
ही आस्था अपने पति में भी थी। वह अपने पति से पूर्ण सन्तुष्ट थी और उनसे
असीम स्नेह भी रखती थी। उनको सेवा में सदा तत्पर रहती, पर उनकी
विवेकपूर्ण तर्कणाओं में उसे नास्तिकता की गंध आती थी।
बह चाहती थी कि उसका पति भी उसके समान आस्तिक बने | इसके लिए
उसने अपने इप्टदेव से मन ही मन अनेक प्रार्थनाएँ भी की थीं, अनेक उपवास
रखे थे और अतिशय क्षेत्रों को चढ़ावे की वोलमा भी बोल रखी थीं। चमत्कारी
भगवान से उसने अनेक बार मनौतियाँ की थीं कि यदि उसके पति रास्ते पर
आ जाएँ तो वह भगवान के सामने एक किलो घी का दीपक जलाएगी, सौ
रुपये का चांदी का छत्र चढ़ाएगी। और भी अनेक प्रकार के प्रलोभन उसने
भगवान को दे रखे थे। तथाकथित गुरुओं के बताए मंत्रों का जाप भी उसने
कम नहीं किया था, गंडा-तावीज भी बाँध चुकी थी; किन्तु अभी तक उसे
सफलता प्राप्त नहीं हुईं थी।यही एकमात्र तकलीफ थी उसे । क्या करे? उसका
समझ में कुछ आता ही न था।
विवेक के सामने भी एकमात्र समस्या यही थी कि लौकिक कार्यों मे हे
प्रकार उसका अनुगमन करने वाली सर्वागसुन्दर रूपमती का माहिर ही ४
कैसे ऊँचा उठे? उसका विवेक कैसे जागृत हो? उसकी अ०.. 5
User Reviews
No Reviews | Add Yours...