अंधेरे से परे | Andhere Se Pare

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Andhere Se Pare by सुरेन्द्र वर्मा - Surendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“मेरी अच्छी मुसीबत है**'करो तो सुदिकिल, न करो तो मुश्किल । बोस मिनट बाद होटल जनपथ में घुसा। घेंम्सफोर्ड बलय से होता हुआ भाया था। लॉडी में आदे ही चित्रा को देखा । हैलो *[! मुझुंद इस ओर पीठ किए काउंटर पर कोहनी टेके फोन कर रहे थे। 'जित्तन अंदर हैं, बार में ।! चित्रा बोली, अच्छा हुआ, तुम भा गए । हम लोग उन्हें इस तरह छोड़कर जाते हुए बुरा महसूरा कर रहे थे । चित्रा एक कदम पास जा गई | स्वर दबाकर पूछा, 'हुआ पया है “बिंदो मे कुछ कहा-सुनी हो गई। खास कुछ नही ।' मुकुंद ने मुडकर देखा और हाथ हिलाया । “अच्छा ?! उसकी आखों में कुछ अविश्वास था, हमें तो कुछ ऐसा लगा, जैमे** बह उपयुक्त धाब्द के चुनाव में ठिठक गई । तब त्क मुकुंद रिसीवर रखकर इघर मुडे । धार गुलशन, हमें एक जगह खाने पर जाना है ।' उनका स्वर नम्न या, बिजनेस का मामला है। पहले ही इतनी देर हो चुबी है कि“ उन्होंने कलाई घुमाकर घड़ी देखी ! हां-हां, बिल्कुल जाइए ॥ 'जित्तन से इतना इसरार किया था कि घर छोड देते हैं, पर वो तैयार नहीं हुआ । 'ोई बात नही ! मैं ले जाऊंगा । 'एकाध पैग से ज्यादा अब और मत पीने देना उसे 1**“अच्छा ?? अन्दोने मेरे कंधे पर हाथ रसा 1 हलवी मुस्कान से बहा, 'कोशिय करूंगा ।! 'ओवके ***गुडनाइट ! ! “गुडनाइट !*




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