श्री सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्रम् भाग - 2 | Shri Suryapragyapati Sutram Bhag - 2

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Book Image : श्री सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्रम् भाग - 2  - Shri Suryapragyapati Sutram Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खुर्यक्षप्तिपकाशिका टीका झु० ५६ दशमप्राश्षतस्य विश दितर्म प्राशक्षतप्राय्घतम १७ ब्व््ल्श्ख्ख््चख्य्श्श्य्ल्च्य्स््य्स्श्च्स्नस्स््ल्स्प्फस्पस्स्स्स्स्स्म्सस्रि ल्िेथा5ऊ-जय मम्लन नन्चन्ञभ् नसस्ससस्स्स्स + +->जभाजओत कअंिचिओओओओं ह कु, हे िरलमकर समाआमाम नं ऋ+ तप क्रान्तेषु सबती स्यर्थः । एतस्मिन्नवस्रे बुगारदेए-वुगाद्धग्रमाणे एको5विकमायों मात | हितीयस्याधिरुमालो द्वार्विशे-हा विशत्यधिके पर्वृशते छाले -दा्विशत्यधिकपबेशतेडतिक्रास्ते काछे-युगस्थान्वे समये-युगस्‍्य पर्वावसाने समये भव॒ति, तेन युगमध्ये तृतीय सम्बत्सरे- इपिकमासः पम्चगेवेति हो अभिवद्धितसवत्सरों एकस्मिन युगे सदतः | इत्येव्समिवर्द्धित सम्पस्सरस्योपपत्तिज्षेया | सम्प्रति एकस्मिन्‌ झुसे सर्वेसेख्यया यावग्ति पर्बाणि सम्भवन्ति ताबन्ति निर्दिदिश्षुः प्रतिवर्ष पर्वसख्यामाइ-ता पद्मस्स णे चदस्स सेबच्छरस्स चडउबीसे पव्वा पण्णत्ता' तावत्‌ प्रथमस्य खड चन्द्रसम्बत्सरस्य चतुविशतिः पर्ाणि प्रज्ञप्ानि । ताव- दिति पूवेबत्‌ अथवा तावत्‌-तत्रेकस्मिन्‌ सुगे प्रशमश्य-प्रथमाख्यस्य चान्दस्य-चन्द्रचाखशात्‌ सप्ुद्धूतस्य चन्द्रस्थाय चान्द्रस्तस्य चन्द्रसंवलितस्य संबत्सरस्थ-चान्द्रवर्षस्य, नथमाख्यस्य चान्सम्पत्सरस्थेत्यर्थ;, तत्र चतुविशतिः पर्बाणि सबन्ति। अन्ैतदुर्क भबति-यतोहि दादश- मासात्मकः एकश्रान्द्सवत्सरों भवति, एक्रेकस्मिन्‌ मासे अमावास्या पौर्णमासीति हे हे परवेणी भवतः तेन एकस्मिन्‌ चान्द्सवत्सरे सर्व॑संझछनया चतुर्विशति। पर्वाणि भवन्तीति एक अधिक मास आता है। दूसरा अधिक भास पएकसों वाइस पथ व्यतीत होने पर अर्थात्‌ युग के अन्त में होता है, इस प्रकार झुग के मध्य में तीसरे 'संबत्सर सें अधिक मास होता है था पांचवें संचत्सर में इस प्रकार दो अभिच- द्वित संवत्सर एक थुण में होते हैं। इस प्रकार अभिवर्द्धित संवत्सर की उप- पत्ति सप्जनी चाहिए । अब एक युग से सर्वेसरूया से जितने पष होते हैं, वे दिखलाने के लद्देश से प्रतिवर्ष को पर्वसंख्या को कहते हैं (ता पढमस्स ण॑ चंदस्स संघच्छरस्स चडवोस पच्वा पण्णत्ता) उस एक युग में पहला चंद्रसंचत्लर का माने चांद्र 'ब्षे का चोचीस पर्व होते हैं। थहां पर इस प्रकार समझना चाहिए बारह सास का एक चाद्रसचत्सर होता है, एक सास में अस्ावास्था एवं पूर्ण एक सास में अम्मावास्था एवं पूर्णिमा ग्थात्‌ पक्षणा पीता पछठी गेट से शुणना मर्ध'लाणमां बेड गपि& मास गाने 8 भीप्े जथिध भाय शेड्से। जापीय भव वीत्या पछी गर्धात्‌ शुणना जातनभां थाय छ, जा रीते जेणनी भव्यभां नीष्ण संक्‍त्यरभां जधिड भास गाने छे, मथवा पांयमा! सावत्यरशभां गज रीते थे मद्लिवधि'त साक्‍वत्यर जे झुणर्भा थाय छे, था रीते गलिदधिप्त स|बत्सरनी &पर्पात सभ०० देवी, डे शे४ शुणभां सवी सथ्याथी ००७ पयों थाय छे ते जतावव। भारे अति. बषनी, पर्वा स्रण्या जताववा उड़े छ. (ना पढसस्स णे चंदस्स संकच्छत्स वी पण्णत्ता) थे सेट घुणभां पछेक्षा यांद्र वषध्ता थरवीसपनो डेाय 9, गरीयां या शे अालाज हे. भार भासवु जे याद अबत्थर थाव 9, णे४ भासभां जभाय जे




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