हिन्दी - शब्दार्थ - पारिजात | Hindi - Shabdarth - Parijat

Hindi - Shabdarth - Parijat by चतुर्वेदी द्वारिकाप्रसाद शर्मा - chaturvedi dwarikaprasad sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर 170 अनाहार विद्यात हैं। कर्मों मे जिनका आचार व्यवहार मीति धर्म आदि में विरोध भा, पे अहःय कटे जाते थे | ऋग्वेद प्रादि मान्यतम ग्रन्थों में दस्य भा दास शब्द अनाय के धयोव में आते हैं।--कर्मा ( घु ) कारों से दिरटु कर्म फण्ने वाले, निन्दिता- चार, गह्वित +--ज्ञुए ( ग्र०) ध्नायाँ के कर्म, अनाय॑ सेवित क्रिया 1-- देश ( घु० ) श्नायाँ का वास-स्थान, जहाँ चातुर्वपर्य की व्यवस्था न हो । प्रनादार तत्‌० ( छ० ) मरृला, उपयास, लंघन।-- ( यु० ) श्रभुक, उपयासी, भभोजन 1 अनाहूृत तत्‌० (थृ० ) ग्रनिमन्बित, आऑकृताड्रान, नहीं युलप्या हुआ ) श्रनिकेता तत्‌० ( शु० ) अ्रनिफेतन, निराणव, ग्ृह- भ्रून्य, निर्धाप, विना' घर का । अनिगीर्ण तत॒० ( एु० ) अ्रतुक्त, श्रकग्रित 1 अनित्य ततद॒० ( ग्र० ) विनाशी, क्रठा, छणिक, अस्यायी, नश्यए, ध्यंशशाली 1-ता (ख््री० ) ' अधिएस्यायिता, क्षण विध्येंसिता।--तावादी (०) जी फ़िसी पदार्थ के सिए्स्यायो हहीं मानते, योद्ु विशेष । --सम ( ३० ) म्यायशासत्र कथित तर्क -न करके, फेवल उदाहप्णों के द्वारा तर्व करता । अनिन्‍न्द्त ततृ० ( थु० ) फ्रा्द्वित, उत्तम 1 अनिममित्तक त्ततु० (छु०) निष्कारण, अरेतुक, विना कारण ।, अनिमिष तत्‌० (४०,) देवता, मत्श्य । [ग्रु०) निमिष- औुल्य । -+आखार्य ( छ० ) देवगुर वृदश्पति ) असियत्‌ तत्रु० ' ( गु० ) अ्रध्यायों, प्रनित्य, अखिर- . स्थायी | अनियन्त्रित तल्‌० ( गु० ) अनिवारित, श्रशासित, * स्केच्च.चारी ! झनियम तत्‌० ( ६० ) मियमामाव, ध्रनिद्यय 1--ग्ति ( गु० ) झनिदठारित, श्रनियम बहु ।' झभनिर्णय तह्‌० ( ए० ) द्विविधा, सन्देह, संशप, दो बातों में से फिसी का ठीक नहों होना, अनिश्वय, अनवधाएण। $ डे अनिर्णोत्त तु ( गु० ) शनिवारित, चमिध्चित । ली) अनी | अनिद्वि ए तत॒० (2० ) भ्रनिध्ित, अशुद्देशित | अनिर्वचनीय तत॒० ( थु० ) प्रवर्शदोय, श्रदाव्ण, | वचन के ब्गम्य, वर्णनारदित, असाध्य वर्णन, उत्तम, झात्युत्तम | अनिवारित तत्‌० ( गु० ) प्रप्रतिषेधित, श्रद्यास्ति, याघ्य रदित, वारण शून्य 1 | अनियाय तल्‌० ( गु० ) आवारणीय, दुरत्पय, वारण करने फे अयोग्य, ग्रवाध्य, कठिन, दुष्ल्लय [ अमिल तह्‌० ( घु७ ) बायु, पवन, यमुविशेष, धतास, देवता विशेष, यह अदिति फे गर्भ से उत्पश्ष हुए हैं, इन्द्र के दोदे माई हैं, इनमे पिता का नाम फश्यव है, भीम श्ौर हलुमान इनके प्र॒त्ञों का न,म है। वायु ४८उनच से हैं, इनका रथ १०० हो भौर कभी कभी हृतार घोड़ों से खोंचा जाता है। ल्पन्य देवताओं के समान वायु के। भी बक्ष में भाग दिया जाता हैं | दमयन्ती के छतोहव पा. साइय इन्होंने दिया था, त्वट्टी के थे जामाता हैं। शरीर में पाँच वायु होते है शिनके नाम ये हैं माण, शापान, समान, उदान ओर हपान -प्रक (१०) विभीतक वृक्ष, बद्देरे का दृध्ठ । -खख (पु०) भगिनि, अनल, काग 1--तत्मज (प०) चायुदु, हशुमान, भीमऐेन, दूछरं घाएडव, “मय (ग०) बाततेग, भ्रजीर्ण,--1शी (२०) यायु भदण के द्वाएा जीवन धारण करने यात्ता; तपस्वों, सर्प, खत विशेष | अनिर्लोसित तत्‌० ( यु० ) अपरिषक बुद्ि, अता- लौपचत, शदियेचित, घरविचारित, ऊदापीद शान- जुन्य ! अनिश तदु० ( ० ) निरन्तर, सतत, सर्वदा ! ( ० ) रात्रि का झमाव 1 अभिए ततृ० (यर०)। घनभिणषदित, आधाध्छित, द्वानि, अपकाग, घुण 1--कर ( गरु० ) धारक, अधख्वितफर] अनिू २ तत० ( थृ० ) धनिदंग, सरतचित्त । अनिष्णात तहु० (झु०) अग्रतीण, अकृती, ऋपफार। अनी तदु० ( घु० ) तीण्य, पैना, नोक, जीच्यधाप, | श्ययी । * +




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-12-04 13:28:26
    Rated : 8 out of 10 stars.
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