आर्षग्रन्थावलि | Arshgranthavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Arshgranthavali by राजाराम जी -Rajaram Ji

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजाराम जी -Rajaram Ji

Add Infomation AboutRajaram Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मा खाए खा पेहक एक सर को हम खत गेनिया में, में अप मं, ते हम, सदी में गसी में, हु शक में है मगव्द | हेही शाप में ऐंगे। लि . 'जाँद का सारा व्ययह्र विदाए पर ही रियर है। विखापत को हो, गे एक ऐसे के सौदे का भी से देन कठिन दोजाए, प्रात कहे पछे परौदा दो पीहे पैसा दंगा,और दुवारदार के; मु पे पेश दो, दब सौदा दुंगा। जब ऐसा दोनों को अविधात हो, शो वह सौदा हो लिया । पर ऐसा कहीं नहीं होगा, तु विश्वास रखे हो, और पे पैशा देंदेते हों पह विशयाश् फखा है; और पढे पद देदेता है। मै विश है, भो हुसरे व्यवहार के हिये जरुरी है! मद क्या एरपाये के लिये इम की गरख रहीं, परमार के हिये इस से कही बहूफर विश्वाप्त डी जदरत है, पर रहते छत भी नहीं हो। लोग कहे है, कि इवर के साज्ात दर नहीं होते ! रहीं होते इसहिये कि “ईखर है! ऐसा पूर्ण बिखर तुलरे मरदर नई है। ईवर है! यह जस्ह विशापर अपने शा में मगाओ, तद हुम निःउन्दे्ठ उपके देशन पा्थेंगे। असतीलेगोपलब्धव्य॑स्तलभाविन चोभगोः । अीसेवपरब्धस्प तत्तभावः प्रसीदाति ॥ (कठ १।१३ ) ' है !इह ऐगाही उसझो जानो औौरत्लदप से एह्चानो, ' दोनों वादों पे से लिएने 'है” ऐपा फहडे मान हिया है, झसझे (देखने के हिये) कस इुप प्ाफ होबावा है। इवपर दिखा पाप से बचाता है। मरपारमदु हे है।- संधालाने संपरयेत्‌ सदासद समाहितः ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now