आर्षग्रन्थावलि | Arshgranthavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
853 KB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मा खाए खा
पेहक एक सर को हम खत गेनिया में, में अप
मं, ते हम, सदी में गसी में, हु शक में है मगव्द |
हेही शाप में ऐंगे। लि
. 'जाँद का सारा व्ययह्र विदाए पर ही रियर है। विखापत
को हो, गे एक ऐसे के सौदे का भी से देन कठिन दोजाए,
प्रात कहे पछे परौदा दो पीहे पैसा दंगा,और दुवारदार के;
मु पे पेश दो, दब सौदा दुंगा। जब ऐसा दोनों को अविधात
हो, शो वह सौदा हो लिया । पर ऐसा कहीं नहीं होगा, तु
विश्वास रखे हो, और पे पैशा देंदेते हों पह विशयाश् फखा है;
और पढे पद देदेता है। मै विश है, भो हुसरे व्यवहार के
हिये जरुरी है! मद क्या एरपाये के लिये इम की गरख रहीं,
परमार के हिये इस से कही बहूफर विश्वाप्त डी जदरत है, पर
रहते छत भी नहीं हो। लोग कहे है, कि इवर के साज्ात
दर नहीं होते ! रहीं होते इसहिये कि “ईखर है! ऐसा पूर्ण
बिखर तुलरे मरदर नई है। ईवर है! यह जस्ह विशापर अपने
शा में मगाओ, तद हुम निःउन्दे्ठ उपके देशन पा्थेंगे।
असतीलेगोपलब्धव्य॑स्तलभाविन चोभगोः ।
अीसेवपरब्धस्प तत्तभावः प्रसीदाति ॥
(कठ १।१३ )
' है !इह ऐगाही उसझो जानो औौरत्लदप से एह्चानो,
' दोनों वादों पे से लिएने 'है” ऐपा फहडे मान हिया है, झसझे
(देखने के हिये) कस इुप प्ाफ होबावा है।
इवपर दिखा पाप से बचाता है। मरपारमदु हे है।-
संधालाने संपरयेत् सदासद समाहितः ।
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