कुण्डलिया | Kundaliya

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Kundaliya by खेमराज श्रीकृष्णदास - Khemraj Shrikrashnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुण्टलियानग० । (२७) प्वहारी जो होय तऊ तन मन घन दन॥«६।॥ ४5 घोड़े आउततदि गदहइन आये राज । गआ लीन हाथर्भे इरिफीमियेयाज ॥ रिकीजिये बाज राज पुनि ऐसे भआायो । पह कीजिये केद सस्‍्थार गमेराज चढ़ायो ॥ 5ह गिरिधर कपिराय जहा यह वृजझि बढाई। हा न कौन भोर साझ उठि चडिये साई॥५७॥ /ई अवृसरके पड़े कान सह दुसद्वन्द । ;य पकाने डोमघर वे राजा हरिचन्द ॥ : शाजा हरिचन्द्र कर मरघट रासवारी । (रे तप्स्‍वी वेप्‌ फिरे अजुन बलघारी ॥ _ह गिरिधर काविराय तंपे वृह भीम रसोंई। शिन करे घटिकाम परे अवसरके साई ॥ ५८ 0॥ उसमे चछे पिदेशकर् कार्ची ठादि कुम्दार ॥ पीकतु वरिनिभई वबादर कीन्होंमार ॥ गदर कीन्होंमार इंते उत कृझु्नाह सुझे ।




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