अथ हठयोगप्रदीपिका | ATH HATHYOGPRADIPIKA

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ATH HATHYOGPRADIPIKA  by खेमराज श्रीकृष्णदास - Khemraj Shrikrashnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्ह्कर द्क्व । श्,्3 संस्कतटीका-माषार्टीकासमेत्ता 1 (९ इत्यादयों मददासिद्ा इठयोगप्रभावतः ॥ खंडपित्वा कालदंडं ब्रह्मांड विचरोति ते ॥ ९ ॥। सन्थान इति ॥ मंथानः मेरवः योगीति मंचानप्रश्तीनां सबपां पिसेषणमू ॥ ६ ॥ * कारेरीति ॥ काकचंडोश्वर इत्याहयों नाम यस्व स तथा अन्ये सपष्ठा ॥ ७ है ' झल्लाम डाते ॥ तथादन्दः समुचय ॥ ८ ॥ इत्यादय इात पूवाक्ता जादयां यपा दे चपा । आदिशव्देन तारानायथादयों ब्राह्माः। मदांतश्र पिद्धाश्र जपरतिदतेश्वयां इत्ययेः उठयोगस्पर प्रभावात्सामथ्वांदिति इठयोगप्रभावतः । पंचम्यास्तसिल । कालों सत्य सस्य दंडने दंड: देहप्राणवियायाजुकूलों व्यापार त॑ खंडयित्वा छित्ला । सृत्युं जित्वे- त्यथेः | श्रह्मांडमध्ये विचरंति विज्लेषणाव्याइतगत्या चरंतीत्ययेः । तढुक्ते भागवते-+ “चोगेश्रराणां सतिमाहुरंतवंदिखिलोक्या। पवर्नातरात्मनामूर इति ॥ ९ ॥ भापषाये-मन्यान-नैंख-सिद्धि-उुद्धकन्यडि-कोरिटक-सुगनंद-सिदध-पाद-चर्पठी-कानेंरी-सल्यपाद- नित्यनाथ-निरंजन-कपाछि-विन्टनाथ-काकचण्डीथवर-अछाम-परभु देवनवोडा-चौली-टिंटिणि-भाव- दी-नास्देव-खण्डकापालिक ॥ ६॥ ७ ॥ «८ ॥ इत्यादि प्रवक्त महासिद्ध यहां .आदि- पदसे तारानाय आदि ठेने हठयोगके प्रभावसे काठके 'दुण्डको ख़ण्डन करके अयात्‌ देह सीर प्राण वियोगक जनक पृत्युकों जीतकर त्रह्मांडके मध्यम विचिरने हैं अर्थात्‌ अपनी इच्छाके सतुसार ब्रह्मांडमें चाहे जहां जा सकते हैं सोई मागवतमें इस चने कहा है कि; पदनक मध्यम हूं मन जिनका ऐसे योर्गीथगोंकी गति जिटोकीके भीनर . और चाहुर होती है॥९॥ अशेपतापत्तत्तानां समाश्रवमठों हुठः ॥ अशषयागयुक्त'नामापारकमठ हृठा ॥ पे० ॥ इृठस्वादोपतापनाशकत्वमसेपयोभसाधकत्वं॑ च. मठकुमठरूपकेणाइ-अशेषेति ॥ उचेषा। जाध्यात्मिकाधिभीतिकाधिदेविकमेदेन न्रिदिधा: । तन्नाध्यात्मिफ दिंविधस 1 शारीर मानस च । तत्र जारोरें दुःख व्याधिज मानस हुम्खे कामादिजमू 1 जाधि- मौतिके व्याघ्रसपीदिजनितम आार्थिदेविके ग्रहादिजानितमू ! ते य ते तापाश्व तैस्त- मानां संतप्तानां पुंसां हरी हृट्योगः सम्वगाश्रीयतत ड्ति समाश्रवः जाश्रय: आांश्रदभूतों मठ मठ एव । तथा हठ: अशेपयोगयुक्तानां अशेषयोगधुक्ताः मंत्रयोगकर्मयोगा- दियुक्तास्तेपामाधारदूतः कमठ' एवम । ज्रिविधतापतप्तानां पुंवाम ाश्रयों इठर 1 यथा च विश्वाधारः कमठः एवं निखिठयोगिनामाधारों हद इत्ययं: ॥ १० ॥ भाषार्थ-अच दठयोगकों संपरण तापीका नादाक और संपूर्ण योगोंका साधक मठ कमठ- (जाट? “रूपसे दणन करते हूं कि; सम्प्रण जो आध्यात्मिक आधिमीतिक आधिटविक तीन अ्रकारकें ताप उनसे तपायमान मतुप्योंको हठयोग समाश्रय मठ ( स्हनेका घर ) रूप हे । उन तार्पो में




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