योग वशिष्ठ | Yog Vashisth

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Yog Vashisth by खेमराज श्रीकृष्णदास - Khemraj Shrikrashnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कथारंभ-वैराग्यप्रकरण । ९३2 एक सुरुचि नाम अप्सरा हती सो जेती कुछ अप्सरा हतीं तिनके विषे उत्तम थी. सो एक समय हिमालयके शिखरपर बैठी थी सो हि मालय पवेत कैसा है कि कामना करके संपन्न जो हृदयमें विचार सो पावि. तहां देवता अरु किब्नरके गण अप्सराके साथ क्रीडा करते हें और कैसा है. जहां गंगाजीका प्रवाद हरी देत चला आवत है सो गंगा कैसी है कि महा पवित्र जल है जिसका ऐसे शिंखरपर सुरुचि अंप्सरा बैठी थी तिसने इंद्रका दूत अंतरिक्षते चला आवत देखा.जब निकट आया तब अप्पराने कहा. अहो सौभाग्य देवदूत तू हेवगणमें ओेष्ठ है तू कहांते आया और कहां जायगा सो कृपा करके कहि दे. देवदूतोवाच हे सुभद्ठे तैंने. पूछा है सो श्रवण कर अरिष्टनेमि एक राजपि था वाने अपने पुत्रको राज्य देकर वैराग्य लिया संप्र्ण विषयोंकी अभिलाषा त्याग करके गंधमादन पवेतमें जायकर भयंकर तप करने लगा अरु धर्मात्माथा तिसके साथ मेरा एक कायथा सो कार्य करके मैं अब इंद्रके पास चला जाता हौं तिसका मैं दूत हों संपूर्ण वृत्तांत निवेदन करनेको चढ़ा हीं -अप्सरोवाच हे भगवाद्‌ वृत्तांत कौनसाहै सो मुझसे कहो. मेरेको तू अति प्रिय है यह जानकर पूछती हूं और जो महापुरुषहें तिनसों कोई प्रश्न करता है तब वह उद्वेगते रहित होकर उत्तर देता है ताते तू कहि दे देवदूतोवाच हे भद्ठे जो वृत्तांत है सो सुन. विस्तार करके में तुझको कहता हों वह जो राजागंधमादन पंबतमें तप करने छगा सो बड़ा तप किया- तब देवतोंके राजा जो इंद्र हैं तिसने सुझको बोलाय कर आज्ञा करी कि हे दूत तू गंघमादन पवतमें जा. और विमान अप्सरा नाना प्रकारकी सामग्री गंघव यक्ष सिद्ध किन्नर ताल सृदंग आदि वादित्र सग लंजा आर वह गवभादन पंत कसा ६ 1 जा नाना अकॉर्कि। लता वृष करके पूर्ण है तहाँं जायके राजाकों विमानपर बिठायके इहां टयाव हे सुन्द्री जब इंद्रने ऐसा कहा तब मैं विमान अर सामश्री सहित तहां आया.अरु राजासे कहा-हे राजन्‌ तेरे कारण विमान ले आयाहूं तपर




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