चाणक्यनीतिदर्पण | Chankyanitidrpan

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Chankyanitidrpan    by खेमराज श्रीकृष्णदास - Khemraj Shrikrashnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही कर हि ७ डष, सखस्तुपर्तव्य:मत्यक्षाद्वपदपुः [| भिनत्तिवाक्यशट्येनअरशंकंटकंयथा ॥ ७9 ॥ दोहा-मरखकों तजिदीजिये, मगट द्विपद पदुजान । वचनचात्यते बेदी, अंधाहिं कांट समान ॥ ७ ॥ भा-मूखकों टूर करना उचित है. इस कारण कि; देखनेमें वह मनुष्य है, परन्तु यथारय देखेतो दो पांचका पु है और वाक्यरूप शल्यसे दूघता हूं जंसे अन्धेको कांदा ॥ ७ ॥ रूपयावनसम्पन्नावज्ञाउकुठसम्भवाः ॥ विद्याहीनानशोभन्तेनिंगधघाइवर्किशुकाः ॥ ८ ॥ सोरठा-बिद्या विन छुलमान; यदपि रूपयीोवनसाहित । सुमन पलास समान; सोह न सारभक 1वेना॥८॥ भार-सुंदरता, तरुणता और बड़े छुठमें जन्म इनके रदतेभी विद्यादीन पुरुष विनागन्ध पठासटाकके फूलके समान नहीं शोभत्ते८॥ कोकिलानांस्वरोरूपंख्रीणांरूपंपत्तिन्रतमू ॥ विद्यारूपकुरू पाणांक्षमारूपतपर्विनामू ॥ ९ ॥ दोहा-रूप को लिलन स्वर तियन, पतिव्रत रूप अनूप विद्यारूप कुरूपको; क्षमा तपस्विन रूप ॥ ९ ॥ भाग्नकॉोकिलाकों झाभा स्वर ६ ।ख़याका जाभा पातिघ्रस्प; कुरूपाक झोभा विद्या द, तपास््रयाका साभा क्षमाई॥ || देकेकुठस्याथश्रामस्याथकुछत्यजेत्‌ ॥ यामुंजनपद्स्याथआत्मार्थप्थिवीत्यिजत्‌ ॥ १० ॥ दोदा-एक त्यजे कुलअथ लोगे, मम कछुलडुके झर्थ । तजे श्राम देदाथ लंगि, देखो आतमअध ॥१०॥ मा०-कठके निमित्त एकको छोडदेना चाहिये; ग्रामंक हेतु




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