कृति और कृतिकार | Kriti Aur Kritikar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 कथा-चस्तु महू कपा काइम्दरी ठपा हर्पभरर्ित के प्रशेतता मह्नकदि बासपट्ट को कपातायक बता ढर प्रद्रधर हुई है। इसमें सेसक ते बाण के चरिठ पर प्रकास डाप्ततेबाली सामग्री का सकल्तन भौर उपयोग तो छिया ही है साप ही कास्पतिक प्रसगों की प्रहुर उदुभाषमा से की उसकी गठम-कुसा को सहयोग दिया है । हर्पचरित” से पता चलता है कि बाण प्रपते छौमार्य में है माता-पिता के सरक्षण से वंचित होकर कुछ-कुछ उज्क शप्त हो भया था। इस भ्रषस्पा में उसकी झुख सेसबश्मसीन चफ्लताएं भो संकेतित की गई हैं। बाटा को देजाटन का बड़ा चाद था| भनेक देक्ष-देघ्ात्तरं को पेखने के शिए उसकर कीजूहल बढ़ा पौर गिधा भौर धम्पत्ति की पाती होते हुए सी बह बर मैं मिकलत पड़ा जिसे बह बड़ों के उपहास का पात्र बना । बहू जिस शाह्मय-कुल्ष में उत्पग्न हुआ पा उसको प्पती निष्ठाएं' थीं। फिर भी प्रपमे साबियोँ में विधि स्ठरों प्रौर श्रेणियों क लाग सम्मिलित करके डसने भपनी उद्ा रहा झौर सदाप्तयठा का परिचय दिया । उसको भष्डसी में पुस्ष प्रौर सनी, बेह्ानिक एव कस्ताकरर, बौड-लिसु सदा जेलमशु, प्रदस्व एवं परिश्रायक--सभी प्रकार के छोग पै । बाण ने ध्तप्दा देशाटन किया प्रौर प्रप्ने यात्रा-झ्मल्त में उसे राजकु्शों गुरुशुमों प्रुणिों भौर विद्ार्तों के सम्पर्क में प्राने का प्रदसर मिला 1 सप्राद्‌ हफएं के दचेरे साईं छुमार इृप्पबर्पम के प्रामस्त्॒य पर बाण हर्प की राज- समा में उपस्पित हुमा । उड़ा परिषय पाकर सम्राट मैं समीपस्ष साप्तवराज के पुत्र ( मापष युप्त ? ) सै कह्म-- 'यह महान झुरझंग है। इससे बास छट्िम्त ही उम्र शौर प्रपती दुख भौर गुरबर्णन के साथ उसने राजा मै पूछा- 'राजा मे उसड़ीजया सम्पटता देसी है 7” हम घोगों ने ऐसा घुदा था” यह कह कर सम्ादू रुप हो गया। उसमे शम्भापण प्रासन प्रादि से बाण का सस्कपर न करते हुए सी स्निम्प हणपाों है प्रष्नी प्रस्वञीति स्पक्त दी । प्पते मिबास पर वापस घौटकर बह फिर सम्राद्‌ के प्रामस्प्रणा पर हो राज-मबन में गया, बर्द्ां उपै प्रदुए सम्मान प्रेम, विश्वास पन प्रौर मिजोषित परि हास की प्राप्ति हुई । हर बठः में बाय मे पपने गुस्सा भोर स्बमाव का बर्णत करते हुए इर्प के सम्परों हाय भी बिस्तृत गर्णान किया है। इससे यह सरलता पे प्रगगत हो पष्ता है दि विधा, हमप्य और रुसा के उपसाम के साप शरण को रछार हरप भी उपलम्प हुपमा था। मानव




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