जब सूरज ने आंखें खोली | Jab Suraj Ne Ankhein Kholi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जब सूरज ने आलें खोली : : २
मेंगरू हँस पडा और बोला--“गौरी ने जाने तुम में कौन-सा जादू है कि
आग को पानी कर देती हो । खैर देखा जायेगा । आदभी को बुराई का
बदला मिलता जरूर है, वह किसी तरह मिले, किसी रूप में मिले।
रतन आगरा था रोया और सो गया। उसे वया खिलाओगी ? गाँव में तो
हमें कोई एक पैसा भी उघार नही देगा ।””
“यही में भी सोचती हैँ । अगर कहो तो गाँव के वाहर वाले झावर
पर जाऊं, नारी तोड लाऊँ और नार गुजेरी कोंके निकाल लाऊं। बस
नारी के घोधे (हुँ) वन जायेंगे और नार गुजेरी पानी में उदालकर
खिलाऊँगी रतन को । मैंने तय कर लिया है कि गाँव में अब किसी के
सामने हाथ नहीं फैलाऊंगी । ॥
गौरी के मुँह से यह सुत मेगरू को ऐसा लगा कि वह साक्षात् देंवी
भगवती का रूप है। कितनी हिम्मत है उसमें हर काम को सिर पर उठा
लेती है और उसे कठिन नही आसान समझती है 1 वह कुछ बोला नही
केवल मुस्कराकर रह गया । गौरी उसका आशय समझ गई। उससे एक
बार सोते हुए रतन तथा रूपा की ओर देखा फिर एक ठाट का झोला
ले निकल गई धर से धाहर 1 अब तीसरा पहर ही रहा था ।
गौरी झावर पर पहुँची । बह गांठो तक पानी में उतरी नारी तोड़ी,
कोंके और भार गरुजेरी निकाली ! फिर सामान झोले में भर मगन मन
चल दी धर की और तभी उसके अन्तर में कचोटन हुई और घ्यान आया
कि रामचरण महतो पाँच रुपये लेगा । साने का इल्तजाम तो हो गया ।
आज रात आराम से कटेगी । सवेरे का भगवान मालिक है, लेकिन उन
की टाँग की हड्डी दृटी है। उसके लिए कुछ भी नही हुआ | यहाँ से है
ही कितनी दूर | चार खेतों का राघ्ता होगा । सामने ही जमालपुर दीख
पड़ रहा है | चलूँ महतो को अपने साथ लिवाती लाऊ !
यह सोच गौरी जमालपुर की ओर वढी । वह आगे बढ़ रही थी
और उसके पाँव पीछे लौट रहे थे। चिन्ता की डोर वार-वार उसे पीछे
सीचती | उसका अन्त.करण कहता कि कहाँ जा रही हे *' अल
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