ऋग्वेद भाग - 2 | Rigved Bhag - 2

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Rigved Bhag - 2  by श्रीराम शर्मा आचार्य - Shreeram Sharma Acharya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कद छह पहल हे बुक शक शेप २० सूक्‍त (ऋषि---कौशिको याथी | देवता --विद्वेदेवा: | छद--भिष्ट प्‌) अग्निमुपसमश्विना दधिक्रां व्यूष्टिपु हवते वह्तिस्क्थः । सुज्योतिषो नः श्रृष्वन्तु देवा: सजोषसो अध्चरं वावशाना: ॥१॥ अस्ने त्री ते वाजिना त्री पवस्था तिस्नस्ते जिला ऋतजात पूर्वी: । तिख्र उ ते तस्वो देववतास्ताभिर्नः पाहि गिरो अग्रयुच्छन्‌ ॥२॥ अग्ने भूरोशि तव जातवेदो देव स्वधावो5मृतस्थ नाम । याइच माया माथ्िनां विश्वमिन्व त्वे पूर्वो: सन्दधु: पृष्टवन्धों ॥३॥ अग्तिर्नेता भग इव क्षितीनां देवीनां देव ऋतुपा ऋतापा | से बृत्रहा सनहो विद्ववेदा: पर्षद्विश्वाति दुरिता ग्रणन्तम्‌ ॥9॥ द्धिक्रामग्निमुपसं च देवीं वृहस्पति सवितारं च देवम्‌ । अदिवना मित्रावरुणा भगं च वसूनूरुद्रँ आदित्यां इह हुवे ॥५॥॥२० है वे हविवाहक अख्विदेव उपावाल में, अन्धकार को दूर करते हुए उषा अध्विद्वय और देधिका नामक देवों को ऋचाओं से आाहुत करते हैं। देवगण हुमारे यज्ञ में भाने की कामना करते हुए उन ऋचाओं को श्रवण करें 11१॥ है भग्ते ! तुम्हारा तीन प्रकार का अन्न तथा तीच प्रकार का ही वास-स्थान है। तुम यज्ञ का सम्पादन करने वाले हो। देवताओों को तृत्त करने वाली तीन जिद्दाओों से युक्त हो । तुम्हारे शरीर के तीन रूप हैं, जिनकी देवता कामना किया करते हैं । तुम आलूस्य से रहित हुए अपने तीनों रूपों से हमारे स्तोम के रक्षक बनो ॥२॥ है मग्वे ! तुम प्रकट होते ह्वी ज्ञानी, प्रकादमान, अमर और अन्नयुक्त हो । देवताओं ने तुमको तेज प्रदान किया है। तुम विष्व को तृप्त करने वाले, अभीष्ठ फछ देने वले हो | देवताओं ने तुमको जिन शक्तियों से युक्त किया है, वे शक्तियाँ सदा तुममें विद्यमान रहती है ॥३॥ ऋतुओं को अकद करने वाले आदित्य के समाम विश्व के नियंता, सत्य कर्मों में प्रदृत, वृत्न-संहारक, पुरातन, सर्वज्ञाता और अकाशमात्‌ अखि-




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