सभा-विधान | Sabha-Vidhan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sabha-Vidhan by विष्णुदत्त शुक्ल - Vishnudutt Shukla

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विष्णुदत्त शुक्ल - Vishnudutt Shukla

Add Infomation AboutVishnudutt Shukla

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सभा-विधान ] ६ सभाओँमें तो निर्धारित रहती दै, परन्ु सावेजनिक असङ्गटित सभाम इसकी कोई संख्या निर्धारित नहीं होती और यद्द संयोजकों पर ( सभा बुलानेवाले लोगौंपर ) विर्भर रदता दै कि वे कितनौ उपस्थितिको कार्यासम्मके लिये पर्याप्त समभ । अपेक्षित संख्याक उपस्थित दो जनके बाद सभाम सबसे पिला काय होता दै समापतिका निर्वाचन | यह कार्यं सङ्गटित ओौर कम्पनौ समाओमिं प्रायः नहीं करना पड़ता, क्योंकि उनमें स्थायी सभापति द्वौते हैं, जिन्हें वैसे दी यह अधिकार होता है कि समाओंका सभापतित्व करें । हां, उनकी अनुपस्थिति में सभापतिका निर्वाचन उन संस्‍्थाओंके नियमानुसार अवश्य किया जाता है । परन्तु असज्नठित सार्वजनिक सभाओँमें यद कर्य प्रायः कना दी पडता है, यद्यपि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब सभापतिका निर्वाचन संयोजकगण परिलेषे दी कर लेते हैं। परन्तु उस अवस्थामे भी यह नियम द कि सभाके एकत्र हो जनिपर नियमानुसार उस समय फिर सभापतिके निर्वाचनके जयि भरस्ताव और समर्थन किया जाय तथा उपस्थित जनताकी स्वीकृति लेकर सभापतिका निर्वाचन किया जाय ! परन्तु अब यह प्रथा धीरे-धीरे उठ चली दे । अब केवल यह प्रथा दे कि यदि ससापतिका निर्वाचन पद्िलेद्दीसे कर लिया गया द भौर उसकौ सूचना समाकी सूचनाक साथ प्रकाशित की जा चुकी है तो फिर सभाक एकत्र होनेपर समापतिका निर्वाचन नहीं किया जाता, केवल यह भोषणा कर दी जाती दे कि असुक व्यक्ति सभापतिका आसन ग्रहण करेंगे । यह प्रथा सुविधाकं लिये उ पयुक्त ओर समीचीन दं । सूचनामें सभापतिका नाम भ्रकाशित कर देनेके बाद भौ अब लोग उस सभामें भाग लेनेके ल्यि आते हैं तेष यह्‌ तौ जनायास हौ माना जा सकता है कि उनका मनो नीत सभापति प्र




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now