श्री जीवाभीगमसूत्रम् | Shree Jivaabigamsutram [ Vol - I ]

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shree Jivaabigamsutram [ Vol - I ] by कन्हैयालाल - Kanhaiyalal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कन्हैयालाल - Kanhaiyalal

Add Infomation AboutKanhaiyalal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रमेययोतिका टीका प्र. १ विषयावत्रणिका ९ मध्यमइल द्वीपप्तमुद्रादिस्वरूपकथनस्‌ द्वपसमुद्रादिकानां निमित्तशाल्रे परममगढतयोप- न्यासात्‌। तदुक्तम-जो ज॑ पसत्थभर्थ पुच्छट तस्सउत्थ संपत्ती” इत्यादि | यो य ग्रशस्तमर्थ पृच्छति तस्यार्थसप्रापि' | अन्तिममद्नल्श्च-दसविह्य सबव्वे जीवा! हत्यादि रूपस्‌ एतस्थ सर्वजीवपरिज्ञान- कारणत्वेन माइड्लिकत्वादिति । तदेव प्रयोजनादिकं मह्नल्श्वोपदिश्यानुयोगः कथ्यते-कश्चासो अनुयोग. ? अनु सूत्रोपपादानन्तरं सूत्रस्य अर्थेन सह योगोडनुयोग' । सूत्रादनन्तरं तदर्थकथन- मितिभाव' । अथवा अनुकूछो5विरोधी सूत्रस्यार्थेन सह योगोड्नुयोग इति ॥| एतद्विषये उपास- कदशाइस्यागारधम सजीविनी टीका द्रश्ब्या, तत्रेदमादिम सूत्रम-- सूत्र भावमंगल है। यहां भावमंगढ का अधिकार है। इस विषय में विशेष जिज्ञासुओं के लिये भगवती की प्रमेयचन्द्रिका टीका देखनी चाहिये | द्वीप समुद्र आदि के स्वरूप का जो कथन है यह मध्यमंगल है। क्योंकि निमि- त्तशास्त्र में द्वीपादिकों को परममंगलरूप से कहा गया है। कहा भो है--- “जो ज॑ पसत्थमत्थं पुच्छई तस्सत्थ संपत्ती”” इत्यादि । अन्तिममंगल “दसविहा सब्बे जीव” इत्यादि सूत्ररूप है । क्योंकि सव जीवों के परि- ज्ञान का कारण होने से इसमें मांगलिकता है | इस प्रकार प्रयोजनादिक ओर मगढू का कथन करके अब अनुयोग का कथन करते हैं--सूत्रोपदान के बाद सूत्र का अर्थ के साथ जो योग है वह अनुयोग है ऐसी अनुयोग शब्द की व्युथत्ति है। इसका निष्कर्षाथ यही है कि सूत्र कथन के वाद जो उसके अथे का कथन है वह अनुयोग है | अथवा-भनुकूछतारूप से छे जगहों लावभ गणने मश्धिष्तर छे, जा पिषयमभां सधपिए व्वणुवानी धम्छिवाणा शिना- सुजि।ने सभवतीनी अभेययन्द्रिष्रा टी॥ बांथी वानी सक्षामणु अरवाभां जावे छे ५, ससुद्र जाहिमां स्व३पतु परे अधन छे, ते भध्यभागण छे, आरणु 3 निमित्त- शस्तभा द्वीपाहिजिने परम भागणरशप 5छ1 छे, 5६ पछु छे बै-- “जो ज॑ पसत्थमत्थ॑ पुछछइ तस्सत्थ संपत्ती” ४ध्त्वा६ “दसविहा सच्चे जीवा” ध॑त्वादईि सूज शचक्तिम भागणरप छे, आरणु डे समस्त व्डवेना परिनानभा शरणुलूत जेावायथी तेमा भागद्षिउता छे जा अथ्यरे अयेब्टश्न, भणण वरणेरेवु ध्यन 3रीने झवे यजडार जवुये।शतु अधन 3४रे छे मनुये(णने सावार्था नीये अभाणु छे-सूजोपाधन (खलने अढुए अशवानी ड्विया) जाई सूतना सथंनी साये व येण थाय छे, तेवा नाभ र्मजुयवेण छे थेय्दे है सूतव ध्यन धयो जाद तेना जधोतु न ध्यन परशाय छे वेछु काम जबुयेण छे सवपा-खवमु:॥ग ३




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now