मेरे अन्त समय के विचार | Mere Ant Samay Ke Vichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आकथन
ऐंड्मन येंल में सर १९१५ से १२० तक रहते हुए ये नोद बाद-
[इस के तौर पर रे गये। यह वियार कम वार-वार भेरे मन से
गुजरता था। दो मास ये अनश्नन थे वारण मेरा खयाल भा
कि काछेपानी में ही भेरा झरीर-त्याग होगा। इसलिए उसवे बाद
यदि ये नोद किसी योग्य भनुष्य वे हाथ पड जायेंगे तो वह इहें
छपवावर प्रभाशित वर देगा। समय ने रग बदझा और स्वय मुभें
ही दाकों प्रवट बरने बा अवसर मिलछ गया। मेंय्रें इनके जदर
कोई परिवर्तत वरना उचित यही समभा जौर ज्या + त्यों पाठकों
मे सामने रस दिये हैँ । एवं प्रकार से य चिचार मेरे अत समय
के है । तव में समझे बैठा था कि अब मेरा दुनिया से वभी वोई
सबंध ने होगा।
लाहोर। ) भाई परमानंद
विषय-सूची
विषय पृष्ठ विषय पुष्य
१ भगवद्गीता और ९ देगासुर प्ग्राम १०२
उसका रचपिता १ १० राजयोग १११
२ श्रीरृष्ण ६९ | 2१ ज्ञान नाग ११७
३ ज्ञान की सापक्षता १९ १२ भवजित-भाग श्श्४
4 अतिम तत्त्व ७ १३ वम-मागं १३०
५ सुष्ठि-उत्पत्ति--दैवी १४ मत-मतातर ११८
विकास 8] १५ सिद्ठात १४६
६ भौतिक सध्टि ध्र् १६ जात्म स्वतत्नता १५३
७ भानसिक विकास छर् १७ घमर और अबर्म १५९
< सामाजिंद विकास ९० १८ क्नैंब्य १६७
ग्रधकार तया ग्रथ-सूचौ श
77 ऋणाणाएणडकत #इ ग्ग्ादशदइंमा एप ाप्रू-3+ थे 2 आफ॥ ह पक पदक 195., 7 ए, फर्म
User Reviews
No Reviews | Add Yours...