साहब बीबी गुलाम | Sahab Bibi Gulam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
490 KB
कुल पृष्ठ :
33
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कहानी
फतेहपुर से तीन कोस पैदत चछने पर पडता था माजलिया स्टेशन । एक
टिल उसी स्टेशन से गाडी पर सवार होतर भूननाथ कलकत्तें आथा था ।
स्थाजदा स्टशन को शवछ, भीड भाड, गोरगुझ औौर प्राहर का
नश्तारा देश अधाक रह गया वह | आ कहाँ निपछा | बुलियी वी छीना
क्षपटी से बचकर विमी कदर बाहर आया । जेब में दो दपय पढ़े थे,
जाह उमने देंद के हवाले विषा । प्रजराणाल न कहा था, हाशियार, जेब
में शयय 4 ही, बरना छुपतर समया । कक्लवत्ता दर बापिर तुम्हारा
फर्नेहपुर नही वि---
यह तो भूतनाय थो पता था वि कल््कता शहर फतेहपुर नही है 1
उस बार एव' नाटक की किताय सेने के लिए महिला दे यहाँ वा तारा
पद्दों पखफले आया था। हरि”्चाद्व लाटव।) उसी से सुन रखा था।
उसपते कहा पा, यह जो मित्तिरी का वह बढ! सा चाहता पेड है त, उससे
भी हजार हजार युने ऊचे हैं वहों के. मवाव, समझ गए चाचा--कौर
देखता क्या हूँ कि उन बड़े मकानों वे माथे पर सडी खरी औरतें मे
से रास्ता दस रही हैं
भूषण चाचा उमरबाले आदमी । अगाघ शपये | तो भी कभी वेछ
भचे नहीं गये । जान वी जरूरत भी नही पडी । चाचा ने पूछा--सिर
पर घूधट वृषट बुछ नही ? तारापदा न वहा--आखिर घूधद ब्यों छें,
जिस दुघ से >-मरे, उह साव देस सी पाता है बोई--मैंने रास्ते पर
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