सवाई जय सिंह | Sawai Jai Singh

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Sawai Jai Singh by वीरेन्द्र स्वरुप भटनागर - Virendra swaroop Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सवाई जयरसिह द कद्वाहों का श्रांवेर पर श्रधिकार अपनी मृत्यु से पहले ढोला राय ने बडशुजरों से दौसा (जयपुर के ३० मील दक्षिण-पुर्व में) म्ौर मीनाओ से माची (जिसका नाम उसने रामगढ रखा), व खोह (जयपुर से पाच मील पुर्वे) छीन लिये, व झ्रलवर के निकट देवती किले पर थी श्रधिकार कर लिया । उसके पुत्र काकिल ने, जो १०३६ ई० मे गही पर बैठा था, मीनाग्रों से श्रावेर ले लिया । यह स्थान लगभग ७०० वर्ष तक कछवाहा राजाओं की राजधानी रहा । अधिर द्वारा शाकस्भरी की सर्वोपरिता स्वीकार करना : पजवन के समय के बारे से श्रांति' रूप समय साभर के चीहाण उत्तरी भारत की प्रमुख शक्ति के रूप में घिक- सित हो रहे थे । इस कारण कंछवाहो द्वारा चाकम्भरी की श्रधीनता स्वीकार किये जाने में कोई भ्राइचर्य नही है । पजवन या प्रद्म्न (ढोलाराय से पाचवा) को पृथ्ची- राज का सामन्त बताया गया है । उसका विवाह चौहाणा शासक की भतीजी से हुझ्ा था । परन्तु लगभग सभी भाटो, कवियों व इतिहासकारो ने पृथ्वी राज प्रथम को पृथ्वीराज तृतीय समभने की शूल की है प्रौर पजवन के तराई के प्रथम युद्ध मे श्रपु्ं वीरता प्रदर्शित करने व कन्नौज से सयोगिता को लाते समय पृथ्वीराज की रक्षार्थ मारे जाने का विस्तृत वर्णन किया है? । परन्तु पजवन को पृथ्वीराज तृतीय का समकालीन मान लेने से ढठोंता के वाद सारा तिथिक्रम, जो काफी सही प्रतीत होता हे, एकदम गलत हो जाता हे । वशावलियो में जो पज़ुन या पजवन का समय दिया है*, वह पृथ्वी राज प्रथंमे के शासनकाल के वहुत निकट है झ्ौर पृथ्वी राज तृतीय के समय से वहुत दूर । फिर भी उपरोक्त वंदाक्रम को श्रधिकृत रूप से जानना अपेक्षित है । 1 कुच्तिल, सुहस्मद तुगलक का श्राक्रमण वीच मे कुछ सामान्य घासक हुए । उनके परचातु १२७६ मे कुन्तिल श्रावेर की गद्दी पर बैठा । ईसामी कुन्तिले के बारे मे ही उल्लेख करता है जब वह सुल्तान 1. टाड 2, पृ- 281-82, कच्छवशमहाकान्य» सर्ग 3; श्लोक 24-30, 40, 49, 69, सगे 4, श्लोक 1-19 कूर्मविलास; पत्र 10-11 । 2 सेखणसी; 1, प्र 296 । 3. लैस टाट 2, 283-84, कच्छवशमददाकाव्य, सगे ५, श्लोक 86-94; जयवशमहाकाव्य सर् 4, कूर्मविलास, पत्र 19, 21; नाथावतों का उतिहास;: प्र 23, केम्त्रिज हिस्ट्री आफ दृडिया 3; पृ- 534 1 4 इनके अनुसार उसका राज्यकाल वि सं 1127-51 तक रहा । पथ्वीराज प्रथम का सबसे पहला लेख वि- सं» 1162 का है ।




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