हरिवंशपुराण | Harivanspuranam Vol - Iii

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Harivanspuranam Vol - Iii by पि. एल. वैद्य - P. L. Vaidya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ मद्गापुराण वर्तमान प्रान्यीय भाषाओकी जननी दोनेके कारण भाषाशाक्षियो और मिच्न मिन भाषाओंका इतिद्वास ढिखनेयाढोंके लिए इस मापाके साहित्यका अव्ययन बहुत ही आउश्यक हो गया है। इधर इस साहित्यके बहुत-से ग्रन्य भी प्रकाशित हो गये है | कई यूनीवर्तिठियोंने अपने पाव्य-कममे मी अपश्रश ग्रन्थोंकों स्थान देना प्रास्म कर दिया है | पुष्पदन्त इस भापाके एक महान्‌ करि ये | उनकी स्चनाओंमे जो आज, जो प्रवाह, जो रस और जो सौन्दर्य है वह अन्यप्र दुर्लभ है। भाषापर उनका अप्ताधारण अधिफार है। उनके शब्दोका भढार रिशाठ है और शब्दाउकार और अर्थाढकार दोनोसे द्वी उनकी कपिठा समृद्ध है । उनकी संस्‍स और साहकार रचनाये न केवल पढ़ी ही जाती थीं, वे गाई भी जाती थीं और छोग उन्हें पढ़-सुनकर मुग्ध द्वो जाते ये। स्थानाभावके कारण रचनाओंके उदाहरण देकर उनकी कछा और सुन्दरताकी चर्चा करनेसे ्रिर्त होना पड़ा ! कुल परिचय और ध्मे पुथ्ददन्त काश्यपगोत्रीय आ्रक्षण थे | उनके पिताका नाम्र केशव भट्ट और मांताका आर | पिता पहले रैय माता न थे, पल्तु पीछे किसी दिगम्बर जैन गुरुके उपदेशाम्तकों पाकर जैन द्वो गये ये और अन्त उन्होने जिन-सन्‍्यास छेकर की त्याया था। मा करने और और छामोक्ले साथ अपने माता पिताकी भा कल्याण कामना की इस बातको सष्ट किया है! ख्य भी पहले दैव ये शत, शलत ि की कबिके आश्रयदाता महामात्य मरतने जब उनसे मद्ापुराणके रचनेका आप किया तब कह्दा कि तुमने पहले भैरव नरेन्द्रको माता है और उसको पर्वतके समान बोस मोर अपनी श्रीविशेषत्ते मुरेनद्रको जीतनेवाछा ब्णेन किया है। इससे जो मिप्याल्भाव उत्पन्न हुआ है, उसका यदि तुम इस समय प्रायभिच कर ढाणे, तो तुर्दाय परकेक मुघर जाव*। ३ मूल पक्षी कठिन होनेके काण यही उड़ ब्वतकापतल कि बाई मय कारण यहीं उन्हें सरटतच्छायासहित ध् न जज दा द्दे। बमणाइ कांसवर्तितियोत्तर गुरुवयथामियपूरियदोत्तर ॥| मुद्वाएवीकेसवमासई महु पिययइ होंठ सुहपाभइ 1 [ शिवमक्ती आप जिनतन्यापेन द्वी भाप मृती दुश्तिनि्णोशिन । हाझणो कास्यपकपिगोतरो गुरुवचनासृतपूरितओयं । ग मुग्घारेविकेशवनामानी मम पितरो मयता सुजधामनी ॥| 1] * गुर शब्टपर भूछ श्रदिमे * दिगम्दर ? टिप्पण दिया हुआ दै| ३ णिमसिरिवैतेसणिजियसुरिद, ॥ पइ मण्णिड दण्णिउ बारराठ, उच्प्णड जो मिच्छछमाउ 1 पन्छियु तादु जइ करइ अत, ता घढर तुष्छ परलोयकन्जु !




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