कुवलयानन्द | Kuvalayanand

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : कुवलयानन्द  - Kuvalayanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ भोला शंकर व्यास - Dr Bhola Shankar Vyas

Add Infomation AboutDr Bhola Shankar Vyas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ भ३ 3 (डितराज जगज्नाथ ने भो किया है तथा अनुज्ञा के विरोधी तिर॒स्कार अछकार का भी विवेचन केया है, जिसका सकेत कुवल्यानन्द में नहीं मिलना। कुबलवानन्द का कारकदापक अल्कार रेइ नया अलकार न होकर दापक का बह मेद है, जहाँ कारक वाला दापक अछकार का मैद गाया लाता है। चूंकि इस भेद में गम्यौपम्य नहा पाया चाता, इसल्पि अप्पय दाश्षित ने इसे अल्ग से अलकार माना है तथा इसका सकेत वाक़्यन्यायमूल्क अलकारों के साथ क्या है। शक्षित के अन्य उपथुक्त अलकारों में कुछ का हवाला भोतराज, शोभावर तथा यश्वस्क में पाया जाता है । हम यहाँ प्र येक अलकार को लेकर उसका सक्षिप्त विवरण देने का चेष्य करेंगे । १ प्रस्तुताकुर -अस्तुताकुर अलकार का सक्षैत हमें कुवछुयानन्द हा में मिलता है । रुस्यक, जयदेव, शोभाकर या पडितरात किसा ने भा इस अछकार को नहा माना है। प्रस्तुताकुर अल्कार का समध अग्रस्तुतप्रशसा से तोच्य बा सकता है। अप्स्तुतप्रशसा में वाच्यरूप अप्रस्तुत इत्तात के द्वारा व्यग्य रूप प्रस्तुत वृतात का व्यञ्ञना होता ह। यह अभप्रस्नुत बृत्तात कसा न किसा रुप में प्रस्तुत बत्तात ले सबद्ध होता है, या तो उनमें कायकारणसवध होता हू, या सामान्य विशेष-सबध या फिर वे समान (तुल्य ) दोोते हैं । इस तरह प्रथम दो सदर्धों में कारण से काय का ब्यतना, काय से कारण की ब्यतना, विश्ञप से सामान्य का व्यजना, सामान्य से विशेष को ब्वचना तथा तुल्य से व॒ल्य की व्यजना--ये पाँच अप्रसतुतप्रशसा प्रकार माने चात हद । अप्रस्तुवप्रश्मसा में वाच्याथ सदा: अग्रस्तुतपरक होता हैं । कितु क्भा-क्भा ऐसा भो देखा जाता है कि पद में दो अथ॑ होने है, एक. बाच्याथ, दूसरा व्यग्याध तथा दोनों अर्थ प्रस्तुत होते ह । ऐसा दशा में प्रस्तुत कायकारणादि से प्रस्तुत कार्यकारणादि का व्यतना पाइ चातो है। इस स्थल में समासोक्ति अछकार तो हो नहा सकता क्योंकि यहाँ एक प्रस्तुत अथ यग्य होता है, साथ हा यहाँ अग्रस्तुतप्रशता भी नहा होः सकता क्योंकि वहाँ वाच्यार्थ अप्रस्तुत होता है जब कि यहाँ वह प्रस्तुत होता है। ऐसा स्थिति में यहाँ कोइ नया अल्कार मानना होगा इसी को दीक्षित स्तुताकुर कहते है । मान लानिये विसा: नायिका ने किसा ब्यक्ति को दुष्टचरित्रा रमणीके साथ उद्यान में रमण करते देखा, उसन उसे मना: कर पास में केतका पर बेठे भौरे से कद्या-- भौरे, इस कार्टो से भरी केटका से क्या, जब कि. माछता मौजूद है? | ठो यहाँ अमर वृत्तान्द ( वाच्य ) तथा कामुक्दृत्तान्त ( व्यग्य ) दोनों प्रस्तुत है, अत यहाँ अग्रस्तुतप्रशसा से भिन्न चमत्कार होने से अन्य ही अल्कार मानना होगा। प्रस्तुतेन प्रस्तुतस्य द्योतने प्रस्तुताकुर ॥ कि भट्ट, सत्या मालत्यां केतक्‍्या कण्टकेड्या ॥ ( का० ६७ ) प्रस्तुताकुर अलकार के रुचिर उद्ाइरणों के रूप में हम हिन्दी कृष्णभक्त कवियों के 'भ्मर- गीत? के पदों का सकेत कर सकेते है, जहाँ उडकर आये हुए प्रस्तुत मौरे के बहाने गौपियों ने प्रस्तुत व्यग्य रूप में उदव का मना का है । प्रइन होता है, क्या इसे अग्रस्तुतप्रशसा से भिन्न माना जा सकता है! अन्य आलकारिकों ने इसे अभ्स्वुतप्र्सा में ही अन्तर्भादिद माना है। उनका मठ है कि तहाँ दो अस्घुद माने जाते हैं, वहाँ भी कवि की अधानविवज्ञा एक हो पक्ष में होतो है, दोनों में नहीं, अत प्रधानगौण भाव




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now