शरत् - साहित्य | Sharat - Sahity

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इारस-पधाषसी हद करना ! इसके पाछे नहीं । हमसे मेरा गह एऋ बढा अनुरोध रहा । इस विपयमे है श्री लाठिरदारी नहीं चाइता | मैं रस्प बाएवा हूँ १७ अप्रैड १९११ रंगून प्रमष, छुम्दरारा पत्र कद सिश्य आज आअगाद दे रहा हूँ। “जरित्रीनों का डिठना हिस्‍्टा ररिसे झिरा स्या (और बहुत दिनोंसे नहीं शिखा) बमसे कम शुम्हें पदनेबै दिए मेडनेद बात सोची है। भगसी मेशसे लपए्‌ एसी रुसाएक मौठर ही मेगा | छरेकिन कौर बुछ मी नहीं कह शइता । पढुकर बापिस मेश देना । श्सका पर्स कारण गह है दि इत$ डिल्कमेद्री ऐ्ली तुम टोगोको फितो मौ शाहतते अच्छी नहीं रूगंगी | प्सम्द करोगे या नहीं इस दिपपमैं मुझे घोर रम्रेह है । (सीहिए, उसे हापना मठ । समायपति माशयने अस्वन्त आंप्रएड्र छाप उसे मागा पा क्वोंकि उसोँ सचमुद्र ही अष्छा ढरुगा है।” मेरौ ये लब बाहियात रखनाएँ हैं। इन# यथार्थ मार्बोको क४ उठाकर कोन समझेगा झीर कौन इसे अच्छा कशंया [* 'ठुम अगर सचमुच्च दी रम्सते हो कि यह तुम्दारी पत्रिका (म्ररहरर्ण) मैं छापने छामक है तो हो छकठ़ा है कि फझ़पनेके दिए अमुमठि दे दूँ, नही तो तुम धग् मेरे ममरूझी आर दृष्टि रल्थकर जिससे मेरी ही ओीज्र छपे ऐसी पेश किसी भी शहतमे नहीं कर सकते । निरोश्ष रुत्प--राहिस्पमे में पद चाहता [1 इठमें सै रिपायठ नहीं चाइठा। इसडे सक्यवां गुम्हारे दिया (हिमेस्द्राक शय) रइमठ होगे कि नहीं कहा नहीं राय सकफठा | अगर दोई भांशिक परिवर्तन लकरी हमछठता है तो यह नहीं होगा। टठड्ी एक मौ डयशन नह छांदने दूँगा । पर एक बाद कह है | कैद नाम झोर प्रारम्मझों रेलकर हौ “परित्र टीन” मत शम्स बैठना । मैं लीतिशरूदा एक विधार्यी हूँ रूप्या दिप्रा्थों | नौठि शास्त धमशता है और ड्िसीस कम धमझतठा हूँ मेय ऐला रूपाक् नहीं | छो बुक्त मौ हो पदुकर छोय देना और [सिशर होऋर क्पपनी साय दिखना । हुपारी एयक्री ड्रीमत है। शेडिन राम देते शमप मेरे गम्भीर अरेप्पक्रों पार रखना। यह कोई बहतस्फेष्यो द्रितात नहीं है अगर झपनेके दापक समशना तो काना मैं झालिरी हिम्ते्रों दिल ईया। उमे में




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