आत्म समीक्षण | Aatm Samikshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
490
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सम्पादकीय
आचार्य श्री नानेश द्वारा उपदेशित एवं मेरे द्वारा सम्पादित ग्रंथ
'आत्मसमीक्षण” का देर से ही सही, प्रकाशन हो रहा है--यह अतीव हर्ष का
विषय है।
यह ध्रुव सत्य है कि मनुष्य की महानता आत्म-चिन्तन से ही जन्म
लेती है। आत्मा अपने कार्यों तथा कर्मों की कर्त्ता तो होती ही है, किन्तु जब
तक उसके मूल स्वरूप की अतल गहराइयों से गंभीर चिन्तन नहीं फूटता, तब
तक उसकी वृत्तियाँ एवं प्रवृत्तियाँ सम्यक् ज्ञान एवं विवेक के समीप भी नहीं
पहुँचतीं। इनका प्रादुर्भाव चिन्तन के प्रारम्भ के साथ ही होता है और ज्यों ज्यों
चिन्तन की सूक्ष्मता बढ़ती जाती है, आत्मा की आन्तरिक आंखें खुलती जाती
हैं। तब आत्मा कर्ता के साथ ही अपनी विज्ञाता और द्रथ भी बनती है।
आत्मा का विज्ञाता एवं द्रश भाव ही उसकी जागृति का परिचायक
होता है। आत्मा जब पल-पल अपने स्वरूप, क्रिया-कलापों तथा गति-क्रमों को
देखती और समझती रहती है, तब वह पूर्ण जागरूक हो जाती है--सावधान
रहती है कि किसी भी पल, किसी भी कदम पर उसके द्वारा ऐसा कोई विचार,
उच्चार या कार्य न हो जो किसी भी प्राणी का किंचित् मात्र भी अहित करता हो
अथवा स्वयं अपनी ही विकास गति में बाधा डालता हो। ऐसे ही आत्म-जागृति
स्व-पर कल्याण की उठ्रेरक बनती है।
प्रस्तुत ग्रंथ ग्यारह अध्यायों में विभाजित किया गया है, जिसके प्रथम
और अन्तिम अध्याय को प्रारंभिक तथा उपसंहारात्मक बना कर बीच के नौ
अध्यायों में इसी उत्कृष्ट आत्म चिन्तन के प्रतीक नौ सूत्रों का भावपूर्ण विश्लेषण
दिया गया है कि ऐसा ही आत्म चिन्तन प्रबुद्धता को प्राप्त होता हुआ
“आत्मसमीक्षण' का स्वरूप ग्रहण करे। चिन्तन उठ्रेरक होता है तो समीक्षण
उपलब्धि। सरलार्थ में समान रूप से निरन्तर अपने आपको देखते और समझते
रहने की प्रक्रिया को समीक्षण कहा जा सकता है। समीक्षण के फलस्वरूप ही
आत्मा अपने श्रेष्ठ पराक्रम के लिए सन्नद्ध बनती है। समीक्षण के सतत अभ्यास
के उपरान्त आत्मा का यह स्वभाव हो जाता है कि वह निरन्तर जागरूक रहे
और परमात पद तक गति करने का सत्रयास करे। उक्त नौ सूत्रों के शीर्षक
मात्र से, मेरा विश्वास है कि पाठक अपनी आन्तरिकता के प्रति उन्मुख होंगे एवं
इस ग्रन्थ को पूरा पढ़ने, निरन्तर पढ़ते रहने तथा मनन करते रहने के अपने
संकल्प को स्थिर कर सकेंगे।
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