हलो | Halo

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Halo by राजकृष्ण मिश्र - Rajkrishn Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हलो : 25 अपने आप, चाहे बिता चाहें, चुपचाप, धोरे-धोरे बंगले के अंदर चलो आई यी। वह अंदर जाना भी चाहती थी और वापस भी लोट जाना चाहती थी। तमी न जाने कहां से जमीन घूमने लगी थी, फूलतपत्ते, पेड- पौधों की डालियां हिलते लगी थी। थकन के मारे वेबस होकर पो्िको से जरा-सी दूर पर ममता लड़खड़ां कर गिरने संग्री थी, तद माया में उसे पकड़कर सहारा दिया था। जिम वक्त बंगले की थाई सडक पर चत्रकर खाकर मपता गिरते लगी यी, दाहिती तरफ से महेश मेहता का बूढ़ा नौकर जा रहा था। उसने अपने ववार्टर से पो्टिकों तक का रास्ता पूरा कर लिया था। वह पोटिको के अंदर घुसकर वरामदे वी सोढियो पर चट्ने दाला था, तभी उसकी नियाह माया पर पढ़ी जो अपनी छोटी-्सी दांहो मे लडखड़ाती हुई ममता को संभालने की कोशिश कर रही थी। वृद्या नौकर बरामद वी सीटियों की तरफ से मुडकर सीधे वाईं तरफ की सडक की तरफ दौड़ लिया भा। उसके हाथ में झोला था, कधो पर ममझा, ऊची धोती के ऊपर बडी और शूरियों चाला चेहरा, मिचमिचाती बांखों पर मोटे फ्रेम वाला चश्मा था। बूढ़ा नौकर ममता तक पहुचने की कोशिज्ष कर रहा था। वह लडखडाती हुई ममता को देख रहा था ओर देख रहा था, वेवस माया को जो ममता को संभालने में खुद भी गिरी जा रही थी ! ममता के करीब पहुँचकर उसे सहारा दे, इससे पहले बूड्ा नोकर खुद ठोकर खाकर मिर पडा था । उमका झोला, उसका ममझा, उसका चश्मा छिटक कर गिर गया। बूढ़े नौकर को दौड़ते हुए तो माया ने देखा नहीं थां। इसीलिए जद वह सामने आकर गिरा तो माया के मुह से तेज चीख निकल गई, वह डर गईं थी | तव तक ममता बैठ चुकी थी। माया की चीख ने उसकी तद्रा को एक क्षठके से जया दिया था। उसने माये पर हाथ रखा हुआ या। अपने दाहिने हाथ को धीरे-घीरे ऊपर की तरफ ले डाते हुए, वह उठने की कोशिश करने लगी । इस बीच बूढ़ा नौकर अपना गमझा उठाकर घूल झाड़ने लगा था। अमसे में छउलझा हुआ उसका चश्मा उसे मिल गया था। घूल झाइना छोडकर उसने पहले आंखों पर चरमा चढ़ा लिया । उस्र वक्‍त ममता उठकर खड्टी होने लगी थी । वूढे नौकर की निगाह उसके पैसें से ऊपर को तर.




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