मरुभूमि | Marubhumi

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Marubhumi by शंकर - Shankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मस्भूमि रू २३ ऑफ दे जंगल है, भाभीजी । कलकत्ते के व्यावसाधिक मुहल्ले मे जंगल का कानून लागू है। दीक्षित जी के हिसाव के खाते की चोरों हो गयी है। ओरिजिनल हिसाव के खाते का मतलब है--विजनेसमैत के प्राणों का भँवरा | खाता किन लोगों ने यायव किया है, अब तक पता नहीं चला । अगर उस तरह के किसी आदमी के हाथ में खाता चला जाये तो षया हो सकता है, इसकी आप कल्पना तक नहीं कर सकती हैं १” कमला की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है| व्यवसाय की अन्दख्नी गंदगी को न समझना ही भाभी जी के लिए अच्छा है, सोमनाथ ने सोचा | कमला भाभी ने सोमनाथ का दफ्तर एक बार अपनी आँखों से देखने की इच्छा जाहिर की थी | मगर सोमनाय मे उन्हें प्रोत्ताहित नहीं किया था । सोमनाथ को भय होता है कि वह सब जगह कमला भाभी के लायक नहीं है । “थघोडा-सा और वक्‍त चाहिए भाभी जी।॥ आपको दिखाने लायक दफ्तर वन जाये उसके थाद मैं खुद आपको सब कुछ दिखलाऊँगा ।”” सोमनाथ ने समय विशेष के लिए भाभी को रोक दिया था। भाभी नहीं जानती कि सोमनाथ के मन में क्या योजना है। अगर किसी दिन सोमनाथ का व्यवसाय फल-फूल उठे, अपनी कंपनी की बिल्डिय वह बनवा सके तो ऐसी हालत में वह भवन के प्रवेश द्वार पर ही श्वेत पत्थर से प्चासना कमला की ऊर्ध्वाद्धुत मूर्ति किसी शिल्प्री से गढवा लेगा ॥ शिल्पी से सोमनाथ एक ही अनुरोध करेगा--केमलदलवासिनी कमला का मुख-भंडल वास्तव में कमला भाभी की ही तरह हो । कमला भाभी अब भी सोमताथ के हिसाब के खाते की ओर ताक रही हैं 1 उनके स्वर में अभियोग का पुट है। “उफ्‌, कविता लिखने के समय भी तुम्हें इतनी माया-पच्ची करनी पढ़ती है, सोम ?” सोमनाथ ने हंसते हुए कहा, “पहले आदक बाबू से सुना करता था और अब अपनी आँखों से भी देख रहा हैं, महाकाव्य में भो हिसाब के खाते जैसा कल्पना का स्कीप नही है । उस दिन आदक बाबू ने एक अच्छी बात बताई थी; वह यह कि आजकल अच्छे कहानी-उपन्यास इसलिए नही लिखे जा रहे हैं क्योंकि तमाम फिवशन राइटर्स एकाउन्टेन्ट होते जा रहे हैं ।' कमला भाभी को जरा-जरा भय लगते लगा। “नहीं भाई, जिसका जो काम है उसको वही शोभा देता है । उन झमेलों में न पड़ना ही ठोक है । “इस युग मे कोई भी काम कया सच्चाई के रास्ते पर चलने से होता है, भाभीजी ?””




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