सत्य की ओर | Satya Ki Or

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Satya Ki Or  by राधाकृष्णन - Radha Krishan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डिददास की कठिसाइर्वा रह सुझित जपत्‌ का प्रतिसिधित्त करते हैं। मैं दष्ट बात केबल प्रचसित प्रणामियों या पुरातत हप्पदायों एुव दर्धतों के दियय हैँ ही हीं कह रहा हैं इसी प्रगार के भौर मी इहुते शाटक विमित होते रहगे भोर इसी कृति रुप में अभिमीत होते रहूँगे (' यहां बेझश मे गिषदलमोय दैशानिक सामान्यताद्ों की दार्धनिक कस्पनाधपों ते भिम्दता एवं दिरोध ध्यक्त डिया है! इसी इंग से हयूस सी कहते है. “अ्रभ्यात्म विद्या के प्रश्निकाश के मिवय में यह प्रस्यम्त म्पास्य एवं उक्षित भाषपतति कौ जा शी है कि बह टौक प्रकार ते शिशास है ही रहीं उपका जरम या सो उस मएसदी भ्रईकार के, जोकि ऐैगे विपयों का भनन्‍्दपण करने का दू छाहुत करता है णो सामब दी सबसे के धह् से दाहर हैं निप्फल प्रयत्तों दारा होता है पा फिर पैसे मुद्र विष्दासों गे कौ से होता है ओ प्रौच्चित्प ढ्री मूमि पर णड़े होते मे अ्रसदप होते के कारण ध्पनी दुर्दता को फ़िपाने प्रोर उसकी रक्षा करने के लिए इम उसमयनेगासी म्पहियों को लड़ा करते हैं। अपनी पुस्त% 'ट्रीटादज प्रॉस ह्पूमत लेचए (मासद प्रकृति पर एक प्रमप् ) भें है इतरी धरष्टि करते हैं कि मूस्यांकम करनेबासी धृत्तियों में बोई सैदधाम्तिक मत्व गहीं होते । वे ऐसे मीसिक ठष्प हैं. जो भ्रपने छिब्रा सौर कुक प्रमागित नहीं करते । दे भ्रपनी प्रवृत्ति में सगोशीय सही हैं। ये बृत्तियाँ हप्प के बिपयों पर कुछ महीं कही । सार्वक इत्तत्प केबल घासुमशिक--प्रध्यक् द्ष्यों एवं पुनंदवितर्यों वष्च मीमित हैं। हम जगत्‌ के स्वभाद या प्रवृति के बिपय में जो इतने प्रध्त उठाते हैं गे ऐसी गाया में होते है कि प्रपहीम हो जाते हैं। महत्त्यपुण जाबशाहमक प्रमुभूदियां हष्प के दिफ्यों शी कोई सूचना सही देती बे 6प्पों से उद्भूत महीं होतीं मेँ इसपर परगप्म्बित ही होतो हैं! डाध्ट से प्रदण किया था कि यदि ह्पूर्भ ह्ाग प्रमुमकजस्प है सो शांपिक सामम्जस्पाएमक पिर्चयों क्री स्पिति क्‍या है। मे तो वे पारधापों सै सम्पड़ हैं ते तष्प का विपमस हैं। ह्पूम का समरेहबाद काध्ट को एन्हुप्ट ग॒ कर सका । इसने तर्क रिया जि यह बाझम जगत्‌ परिवर्ततशीस बिचारों दे वहुस्तरों मे दियद झक्पता गा निमणि-माच है। प्रभुभब से स्वतंत्र झिसी यणाबंता गत जान सरसों हुपारे लिए भमंभद है । गितोय प्रस्षापयाए ग तो तक है गिगसेषणाएमर शेश्य हैं, मं ध्रमुभव हारा पुष्ट होगे योग्प स॑एलिषणारमक प्रस्यापमाएं हैं। विर भी ये रमाएनाएं जो मं ठो घाश्टिर्र युदरदितयां हैं से भ्रागुमविक गामास्यताएं रे प्रावए्पक रुप गे राय हैं । ए एनब स्टाएरहेड भोर बए्यर्द रगस हे धपने बंध “प्रियोपिया मैंकमेटिका मैं यह हिसाने के प्रयल शिया हैं हि जधितौस प्रवापनापों में भी निरिक्षत गए १ नोक्स ऋ्मीनब 1 ३ “ड्तक्पबरौड कमसरिय इपसस ऋररश४टिंग , सबने १३




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