ओंकार : एक अनुचिन्तन | Omnkar Ek Anuchintan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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झोकार की निष्पत्ति
प्लोकार की महिमा, सर्वमान्यता और व्यापकता का दिग्दर्शन
छराया जा चुका है। अगर झोकार सम्बन्धी साहित्य का समग्र
संकलन किया जाय तो निश्चय हो एक विशाल ग्रन्थ तैयार हो
सकता है ।
इस प्रकरण में देखना है कि “४ शब्द किस प्रकार निष्पन्त
हुआ है ? इस छोटो-सी यागर में कौन-सा सागर भरा है? किस
कारण मनीषी महषि उसके महिमागान के लिए प्रेरित हुए है?
प्रसंख्य मंत्रो मे “४ को मूर्थन्य स्थान प्रदान करनेवाला तत्त्व क्या है ?
जैसा कि पहले प्रतिपादन किया जा चुका है, श्लोंकार विभिन्न
साधना-पंथोी मे लगभग सर्वमान्य है। इसी कारण उसकी निष्पत्ति भी
झनेक प्रकार से की गई है। प्रत्येक निष्पत्ति, उस-उस परम्परा के
दृष्टिकोण की द्योतक है।
सर्वप्रथम हम जैन मान्यता को लेते है। ज़ैन परम्परा में प्रमेष्ठी-
प्रम-पद में स्थित-देवो और गुरुओ के पाँच विभाग किये गये है,
जो इस प्रकार हैः --
(१) अरिहन्त
(२) अशरीर (सिद्ध) ह
(३) आचाये
(४) उपाध्याय
(४) मुंनि (साबु)
इन पाँचो परमेण्ठियो के आद्य श्रक्षर इस प्रकार हैं--अ-अ-आ--उ
“उ-म्र् । व्याकरख-आस्त्र के अनुसार इन अक्षरों की सन्धि करने
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