अर्धविराम | Ardhaviram

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ardhaviram by मुनि रूपचन्द्र - Muni Roopchandr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुनि रूपचन्द्र - Muni Roopchandr

Add Infomation AboutMuni Roopchandr

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सिगरेट के अधजले टुबड़ों से किसी ज्वालामुखी उभाड़ने का तुम्हारा विचार मुझसे नही सहा जाएगा और मेरे अस्तित्व से त्तव विद्रोह किए बिना रहा जाएगा यह देखकर कि स्वतंत्रता का नारा वुलन्द करने वाली चिड़ियाँ चुग रही है जूठे चावल के दाने अहूं की दुह्ाई देने वाले विषधर चाट रहे हैं थूका हुआ पीक, अस्तित्व-वोध का विज्ञापन करने वाले गुरिल्ले निगल रहे है क॑ किए गए शब्द ; भरे दोस्त ! उनसे फिर आग पाने की बात ? और उस आग से ठिठुरते शरीर को गरमाने की बात ? -“कितना बड़ा मजाक ! मैं कहता हैं, तुम मुझे दो अपनी वह कुंठा, जो बन सके युद्ध की प्रेरणा जीवन-यज्ञ में होमी जाने वाली समिधा हम उसे चिनगारी बनकर जिएँ और जो आएं यथार्थ-- उसका एक-एक पृण्य क्षण आपस में बॉट-बॉटकर पिएं, सेकिन क्या तुम्हारे में साहस है “ अपनी क्रुण्ठाओं के प्रत्ति ईमानदार बने रहने का ? अधें विराम ,.. १६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now