श्रीमद्वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड ६ | Srimadvalmiki Ramayan Sundarkand-6

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Srimadvalmiki Ramayan Sundarkand-6 by चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwarkaprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द् सुन्दरव.. + इनकी पीठ पर बडे वेग से हिलती हुई इनको पूंछ, यदड द्वारा पकडे हुए अजगर सौंप की तरह हिलती हुई, देख पड़ती थी ॥1२४॥) घाहू. संस्तम्भयामास महापरिघसन्निभी । ससाद च कपिः कठआं चरणों सञ्चुकोच च॥ ३४५॥। हनुमानजी ने (कूदने के समय अपने परिष जेस प्राकार वाली दोनो भुजाप्रों को जमा कर, कमर पर दोनो पैरों का धल दिया और उनको (पैरो कौ) सिकीड लिया ॥३५॥ संहृत्य व भुजो श्रीमांस्तयव च शिरोघराम्‌ 1 तेजः सत्व॑ तथा बोर्यमाविवेश स॒ वोर्यवान्‌ ॥॥ ३६ ॥। उन्होंने झपने हाथो, सिर भोर होठो को भी सिकोडा ! तदनन्तर मपने तेज, बल भौर पराक्रम के सहारे ॥३६॥1 मार्यमालोकयन्दूराद्ध्व. प्रणिहितेक्षण: । रुरोध हृदये प्राणानाकाशमवलोकयन्‌ ॥॥ ३७ ॥॥ पदुस्यां दृढ़मवस्थान कृत्वा स कपिकुझ्जर :। निकुझच्य कर्णा हनुमानुत्पतिष्यन्महाबलः ॥ ३८1 जाने के मार्ग को दूर से देखा । उछलते के समय हनुमानजी ने ऊपर की और आकाश को देख, दम साधी झोर भूमि पर अपने पैर दुढ़तापूर्वक जमा, दोनों कानों को स्िकरोड़ा 1३७1 रेश्या वानरान्वानरश्रेष्ण८ इद॑_ दचनमन्रवीतू यथा राधवनिमुकतः शर. श्वंसनविकमः ॥ ३६ ।४ गच्छेत्तदद्‌गभिष्यासि लद्भाय रावणपालिताम्‌ | न हि द्रक्ष्यासि यदि ता लंकायां जनकात्मजाम्‌ 11४०॥॥




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