धन्यकुमारचरित्र | Dhanyakumarcharitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीपस्यकुपार चरित्र । १७ यकुमार को पंत्र के बांचने से बहुत खुशी हुई । वह उससें जैसा लिखा था उसी अनुसार निधियों के रथानादिकों ठीक २ समझकर राजा के पास गया और रन से युक्ति पूर्वक गृह के लिये अभ्यर्थना की |, तथा अपने शुभोद्य से आज्ञा मिल जाने पर घरके भीतर गया ओर वहां निधियों को देखकर अलन्त आन॑दित. हुआ ॥१२५॥१२३॥ बाद उन उत्कृष्ट निधियों को अपने अधिकार में करके उन के छारां होने वाले अर्परिमित . धन का व्यवहार मनोभिरूषित फलके देने वाली देव शुरु तथा शास्त्र की महापूजा में, सत्पात्रों के लिये पुण्य सम्पादन के कारण दान के देने में, दीन तथा अनांथों के लिये उनकी इच्छा के अनुसार दया दान करने में तथा प्रचुर विभूति से जिन धर्मियों का उपकार करने में करने लगा । इसी तरह धन्यकुमार थोड़े दिनो में राजमान्य होकर त्रिमुवन विस्तृत सुयश के ढवारा उपन्न होने वाले नाना प्रकार भोगों को भोगने लगा। धन्यकुमार अपने कुठुम्बी तथा और २ लोगों को भी बंहुत प्रिय था। वह अपने शुसाचरण से धर्म सेवन करता हुआ सुखरूप पीयूष समुद्र में निर्मेम्त होकर कीतुक से वाते' हुये. समय को न जानकर सुख पूर्वक. « रहने छगा॥ १२४ ॥ ११८ ॥ ्ि ठ््‌




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