साहित्य मीमांसा | Sahitya Mimansha

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Sahitya Mimansha by पं रामदहिन मिश्र - Pt. Ramdahin Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्द्द साहित्य-मीमांसा । ' न 5 पट्टी विरद्र्मे राधिकाकी तन्‍्मयता फरिपूण हुई थी। राधिकागे प्रकट कर दिया था कि ऋृष्णविरद असम्भव है। राधाइण सदा ससारमें फदम्बमूलमें.विराजित रहेंगे । राधा कभी कृष्णसे अलग छोनेवाली नहीं है । रे सांताक प्रभका एकान्तकता सीताका विरद्द दूसरे ढगका दै । सीताका'विरह सुख हल्पोपेर नहीं है। किन्तु उस कारागारमे भी सीता अश्योक वसकों राममय कर दिया था । इसीसे सीता उसी राममय स्मरणसे जीवित थी। राक्षस कछुलके भर्यत सीता और भी एकान्त मनसे रामकों स्मरण कर७ञी थी । भयने उसकी भक्ति और पत्तिग्रेमकों और परिपुष्ठ कर दिया था । चहू दिनरात रामकी श्याम मूर्तिका ध्यान किया करती थी । सीताकी पतिपरायणवा पराकाष्टाकों पहुँच चुकी थी | वह निरन्तर सरमाके साथ मधुर वचर्नेसि रासकी बाते किया करती थी। अग्मिपरीक्षार समय उस ग्रेमम्रगादताकी परीक्षा हुईं थी । रामके अमाइस बिछग दोफर सीता इसी आशासे अशोक चनमें जीवित थी फि रामके पुनर्मिडनस फिर भी उस प्रेमाकुकों पारँगी। उसके ज़ीनेका कारण यही एक त्रमाशा थी, 'किन्ठु छक्ष्मणने जग्र जाकर उसे जगलमें छोड [दिया तब उसे फौन आशा थी इतने पर भी सीता आयपुप्न रामचन्द्रकी मन्नलाकाक्षिणी घनी हुईं थी। जैसे कोई छत्ा अपने आभय स्थानसे उस्राद़्कर फेक दी जाय वैसे ही सीता रामाश्रयसे झछग कर दी गई थी। यधपि तापसाभम अशोफ चनके समान नहीं है दवापि यह उससे , ५




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