हिन्दी साहित्य विमर्श | Hindi Shahity Vimarsh

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Hindi Shahity Vimarsh by पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी - Padumlal Punnalal Bakshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ११ ) कलाका। आधुतिक फर्चियोर्मे एसिज्ञायेय, बेस्ट ध्राउनिडूकी झतिमें शक्ति है मऔए फीट्सकी रचना में कलाकी प्रधानता है | कुछ फवियोंकि काव्योर्मे फछा और शक्ति दोनों पायी जाती है । पाश्यात्य साहित्यमें शोफ्सपियर शोर दान्ते और भारतीय खाहित्यमें कालिदास और घुलघीदास इसी कोटिफे फवि हैं। हमें चादिए कि एम प्रायोन कवियोंके फाव्योंकी, शक्ति और कला दोनों की द्ृष्टिते, समालोचना करें। कवियर विद्दारीकी सतच्तई[क्षे एक समालोचकने अपनी आलोचना बाद बाहफी घूम मचा दी है और अलड्डारोंकी यणवा करा दी है। पर बिद्दारीफी शक्ति शून्यतापर उन्दोंने ध्यान ही नहीं दिया। एक यार उन्हें विदह्ारीऊफे समयपर भी द्वएि डालनी चाहिए थी। फाव्य समाजका प्रतिविम्य होता है। अतएय उन्हें विद्ारीके फाव्यक्े साथ दी समाजकी सी आलोचना फरनी चाहिए थी। पिद्यरीने सिफ अपने पूर्वेयर्तों कवियोंले ही भाव भ्रहण नहीं किया था, उसने समाजसे भो अनेक बातें ली धोंगी। उनका भो उत्छेख करना समालोचकफा कर्तव्य है। समाठोचनाकी उपयोगिता इसीमें है ।) आधुनिक साहित्यमें अर ऐसी छुछना घुलक और ऐेतिहा सिक समालोचनाओोंका आदर दोता है। पाश्चात्य समालो- चकोंकी रचताओंकों पढनेसे यद् मालूम द्वोता है कि साहित्य भौर ज्ञातीय जीवनमें: परस्पए क्या सम्बन्ध है। ऐसे ही खादित्य समालोचर्फोद्दारा ज्ञातीय चरित्र गठन द्ोता है। यही




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