गद्य - कुसुमावली | Gadya - Kusumavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ललित कलाएं और काव्य ७ (२) जिन उपकरणों द्वारा इन कलाओ का सन्निकर्ष सन से होता है, वे चच्ुरिद्रिय और करणेद्विय हैं। (३) ये आधार और उप- करण केवल एक प्रकार के मध्यस्थ का काम देते हैं जिनके द्वारा कला के उत्पादक फा सन देखने या सुननेवाले के मन से सबध स्थापित करता है और अपने भावें को उस तक पहुँचाकर उसे प्रभावित करता है, अर्थात्‌ सुनने या देखनेवाले का मन अपने मन की सहृश कर देता है। अत्व यह सिद्धांत निकला कि ललित क॒ल्ला वह वस्तु या वह फारीगरी है जिसका अनुभव इद्रियो की सध्यस्थता द्वारा सन को होता है और जे! उन बाद्याथीं से मित्र है जिनका प्रत्यक्ष ज्ञान डद्रियाँ प्राप्त करती हैं। 'हूसलिए दम कह सकते हैं कि ललित क लाए मानसिक दृष्टि में सैदय का प्रत्यनोफस हैं। इस लक्षण को समझने के लिये यह आवश्यक है कि हम प्रत्येक ललित ऊजा के सबंध सें नीचे लिखी तीन बातों पर विचार करें--(१) उनका मूर्त आधार, (२) वह साधन जिसके द्वारा यह आधार गोचर होता है, और (३) मानसिक दृष्टि में नित्य पदाथे का जे प्रत्यक्तोकरण होता है वह कैसा और कितना है| बास्तु-फल्षा में सूर्त आधार निकृष्ट होता है अर्थात्‌ ईंट, पत्थर, लोहा, लकडी आदि जिनसे इमारते बनाई जाती हैं। ये सब पदार्थ मूर्त हैं, अतएव इनका प्रभाव आँसों पर वैसा दो पडदा दे मैसा कि फिसी दुसरे मूर्त पदार्थ का पढ़ सकता हो। भ्रकाश, पाध्तु ऊछा




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