सीताराम विवाह संग्रह | Sitaram Vivah Sangrah

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Book Image : सीताराम विवाह संग्रह  - Sitaram Vivah Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुद्धकरि घरि सुकुमारी ॥ नेहकली सिय आज्ञाकान्हा । चदन स्केत रक्तघसिदीन्हा ॥ मणि कोहरमह धार हरपाइ । आंत सु गैघ अतिबिमल सदाई ॥ प्रेमकली माला कूसुमनकी । गूंथिद सो भट् सियमनकी ॥ कोपर संपट मणिन जरा । सकल पा- रपदजल अन्हवाई ॥ हेमसमकारि कमलाजल घरऊ । पूजा साज सकल तहूँ करेऊ ॥ सबकरि बहुरि मातु डिगद्याई सब कीन्हों सो द्यो जनाई ॥ पूजन हेतु जनक तह गयऊ। दखि धनुष सन चिन्ता मभयऊ ॥ रानी कहेँ पनि लीन बोलाई । पूछउ आतस- नेह समभाइ ॥ आज कवन पार चथ्यो कान्हा । धनुष ठढ् सन्सु- खकरि दीन्हा ॥ रानी बोली राजदुलारी । सिया कॉन्द ममरु- चिहि बिचारी ॥ सीताकहेँ पनि नप हँकराईइं । मातु मधुर कहि लीन्ह बोलाई ॥ पूछेउ सब दूत्तान्त जनाइ । सुनिराजा मन अतिसुखपाईं ॥ बहुरि बिचार कीन्द मनमाहीं । यह कूवारि तो बलि श्रतिद्माही ॥ जो तोरे धनहा शिवकेइ । सिया दीश सो सेंदरदेई ॥ जबलागि नाहिं पिनाक कोई तोरे । सिय बिवाह में करब न भोरे ॥ असनिष्टाकरि सनमह राखी । समयपाय रानां सनमारखी ॥ संग्दकत्तां॥ याहिदिधि पप्टमबप व्यतीता ।करत बिहार ललित गभ सीता ॥ दोद्द ॥ एक द्विस श्रीजनक्जी निज के- जनके माहिं । बेंठे निज रानिन सहित मोद बरणि नाहे जाहि ॥ चोपाई ॥ रानी केवरि न बात जनाइ । मठ बिवाहकां समय सहाईे ॥ प्रथम अवधपर चरचा रहेऊ । आवत जात लोग सब कहेऊ ॥ जबते ग्राप प्रतिज्ञा कीना । रहा बिवाह चाप आधौ- ना ॥ अब बिलेबकर अवसर नाहीं । ठनिये यज्ञ जो सशय जाहीं ॥ बोले नप सन प्राणपियारी । बचन सत्य सब अहें तुम्दा- री ॥ कालिहि सभामहे निरचय करिहों । गरुसन बृभऋ दिवस सो घरिहों ॥ प्रात प्रातरुतकरि महराजा । राजसभा गये सहित समाजा ॥ कुशध्वजाद़ि सब श्राता आये । बेठि निजासन परम सुद्दाये ॥ मेत्री सकल आय तहूँ राजें । सतानंद पुनि आय बि-




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