सीता | Sita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
550
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है सीता)
बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा,--“मेरी ज्ञो धारणा थी, कि
रामसे मेरा काम बन जायेगा, चह बिलकुल ठीक थी। उसका
प्रणाम भी मुझे सभीसे मिलने रूगा |
आश्रममें पहुँचकर, मुनिने राम-लक््मणको चडे आदरसे रपा
आर उनको तरह-तरदके अख-शख्र प्रदान किये । मुनिके दिये
डुँंए फन््द, सूछ और फरलॉफो दोनों भाइयोंने बडे प्रेमले खाया
भ्र्भाका निर्म जल पीकर बढेही सन््तुष्ट हुए ।
«* हसरे दिन, प्रात*काल दोतेही मुनि नित्य-नैमित्तिक कर्माले
निद्त्त हो, यश्ञ-भूमिमें आये और यशकी क्रियाएँ फरने छगे ।
राम और लक्ष्मण उनकी यज्ञ-शाछ्ाकी चौकसी फरमे छगे।
सुनिके लौट आकर यश करने और ताडकाफे मारे आनेका
संवाद खुन, भारीच और खझुबाहु, दल-के-दल राक्षसोंकों लिये
हुए भा पहुँचे और तरह-तरहके उपद्रव मचाने रूंग्रे। उस
समय दोनों भाइयोंने ऐसी घबीस्ता दिव्वायी, कि उनके छेफ्फे
छूट गये और पुक-प्फ करके सभी उनके घाणोफे प्रदारसे मारे
गये । मुनिकी अमिछापा पूर्ण हुई और उनका यज्ञ निर्विध्च
सम्पूर्ण द्वो गया।
इन दुए और उपव्रवी राक्षसरोंफे मारे जानेसे फेवल विश्वा-
प्रिश्रकोही प्रसक्षता न हुई, चिक आस पासके सभी ऋषि
मुन्रियोकी आनन्द हुआ भौर उनके रुड-फे रु राम-छष््मणको
देखनिफे छिये भाने छगे 1 सयते हद्यसे उनको माशीवदि दिये
भीर उन्हें घार-यार + व फरतेहुए सी न अधाये *
प्रकार मिलते ४०... आनन्द छेते हुए
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