बादर बरस गयो | Badar Baras Gayo
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
865 KB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धादर बरस गयो १७
काल-तिमिर के नागफास में बन्दी किरन-परी है,
झौर फ़ल के नन्हे से दिल पर चट्टान धरी है,
घिरी श्राग की लाल वदरिया तरु तरु पर उपवन के,
पात पात पर झगारो की घुप - छह छितरी है,
भीडः नीड पर वज्ज-विजलियो की आ्राँधो मंडराती,
पहा तृरा में करवटें ले रहा मस्यथल का पतमार।
जन्म है यहाँ मरण-त्यौहार ।
लिये भोद में नाश, मर रही जीकर यहाँ भ्रमरता,
घृरित चिता की राख छिपाये जग भर को सुन्दरता,
दत्ता लकडियो के नीचे पुरुपार्थ पार्थ का सारा,
अरे | कृष्ण पर क्षुद्र वधिक का तीर व्यग सा करता,
हाय ! राम का शव सरयू में नगा तर रहा है,
सीता का सिन्दूर अवध में करता हाहाकार।
जन्म है यहाँ मरण-त्यौहार 1
लगा हुआ हर एक यहाँ जाने की तैयारी में,
भरी हुई हर गेल, चल रहे पर सव लाचारी मे,
एक एक कर होती जाती खाली सभी सरायें,
एक एक कर विछुड रहे सब भीत उमर बारी में,
भ्रौर कह रही रो रो कर सब सूनी सेज श्रटरियाँ---
“सदियों का सामान किया क्यो ? रहना था दिन चार”।
जन्म है यहाँ मरण-त्योहार ।
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